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________________ 8 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति संभावना को उपलक्षित देखकर महाकाश्यप ने प्रस्तावित किया- 'अच्छा आवुसो, आओ । हम धर्म और नियम का संधान करें, सामने अधर्म प्रकट हो रहा है। धर्म हटाया जा रहा है। अविनय प्रकट हो रहा है, विनय हटाया जा रहा है। अधर्मवादी बलबान हो रहे हैं, धर्मवादी दुर्बल हो रहे हैं। विनयवादी हीन हो रहे हैं 35 इस तरह धर्म और विनय के ह्रास की संभावना का निराकरण करने के उद्देश्य से प्रथम संगीति की गयी। दूसरी संगीति भी इसी कारण से हुई। 37 उस समय वैशाली के वज्जिपुत्तक भिक्षु उपवास के दिन कांसे की थाली को पानी से भरकर और भिक्षुसंघ के बीच में रखकर आने-जाने वाले वैशाली के उपासकों से उसमें सोना, चांदी, सिक्का डालने के लिए कहते थे और फिर संचित द्रव्य को आपस में बांट लेते थे । आयुष्मान यश ने इस अकार्य का विरोध किया। इस पर देश-देशान्तरों के स्थविरों को एकत्र करके संगीति की गयी। तीसरी संगीति अशोक के राज्यकाल में पाटलिपुत्र में हुई। उस समय अशोकाराम में भिक्षुओं ने उपोसथ करना छोड़ दिया था और सात वर्ष तक उपोसथ नहीं हुआ था। तब अशोक ने स्थविरों को आमन्त्रित करके यह विषय उनके समक्ष प्रस्तुत किया और तब तृतीय संगीति हुई जिसमें नौ मास लगे।39 इस संगीति के पश्चात् अशोक का पुत्र महेन्द्र धर्म प्रचार और उसके संरक्षण के लिए लंका गया। उसने त्रिपिटक और उसकी अटूटकथा को जिन्हें आरम्भ में महामति भिक्षु कण्ठस्थ करके ले गये थे, प्राणियों की स्मृति हानि देखकर भिक्षुओं को एकत्र कर, धर्म की चिर स्थिति के लिए पुस्तकों में लिखवाया। इस तरह तीन संगीतियों के पश्चात लंका में त्रिपिटकों को पुस्तकारूढ़ किया गया। 10 जिस प्रकार महावीर के ग्यारह गणधर थे जो महावीर के उपदेशों को संकलित करके अंगों में निबद्ध करते थे उस प्रकार के बुद्ध के गणधर नहीं थे। बुद्ध समय-समय पर उपदेश दिया करते थे किन्तु उनके उपदेश को तत्काल ग्रन्थित करने का दायित्व किसी का नहीं था । केवल निरन्तर साथ रहने वाले उनके शिष्य उपदेशों को श्रवण करते और स्मरण रखने का प्रयत्न करते थे। यही कालान्तर में विनयधर कहलाने लगे। 41 प्रथम बौद्ध संगीति के समय बुद्ध के अन्यतम अनुयायी आनन्द स्थविर भी उपस्थित थे। जब संगीति के लिए स्थविर भिक्षुओं का चुनाव होने लगा तो भिक्षुओं ने महाकाश्यप को कहा - भन्ते, यह आनन्द यद्यपि शैक्ष्य अनार्हत हैं तो भी छन्द राग, द्वेष, मोह, भय, अगति बुरे मार्ग पर जाने के अयोग्य हैं। इन्होंने भगवान बुद्ध के पास बहुत धर्म सूत्र और विनय प्राप्त किया है। इसलिए भन्ते, स्थविर आयुष्मान को भी चुन लें। इस प्रकार बुद्ध के पश्चात् स्थविर भिक्षुओं को एकत्रित करके धर्म और विनय के रूप में बुद्ध के उपदेशों का संकलना करना उचित ही था। किन्तु महावीर के एक नहीं, दो नहीं, ग्यारह गणधर थे जिनका मुख्य कार्य
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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