SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 115. वशांर्तमरण 116. वहिद्धादाण 117. वाचना 118. वातरशन 119. व्रात्य पारिभाषिक शब्दावली • xxxi : इन्द्रियों के वशीभूत होकर मृत्यु। : अपरिग्रह। : व्याख्यान। : दिगम्बर श्रमण, ऋषि। : व्रात्य का अर्थ ब्राह्मणेतर संन्यासी से है। प्रचलित अर्थ में व्रात्य वह व्यक्ति है जिसने उपनयन संस्कार न कराया हो, जो यज्ञोपवीत न पहनता हो, पतित सावित्री और यज्ञ बहिष्कृत हो; जिसे वेदाध्ययन का अधिकार न हो। इन्हें पूर्वजों के मृतक संस्कार करने तथा श्राद्ध आदि करने की मनाही थी। इनसे भोजन और विवाह के सम्बन्ध भी निषिद्ध थे। : अनावश्यक विवाद करने वाले। : घूम कर आने वाला, इससे उस पर तथा उससे उस पर। इसी से विभ्रमित बना है। : अनुशासन। : नियम भंग करना। : श्रमण को आदेश था कि गमनागमन के लिए ऐसे राज्य में न जाए जो राजविहीन हो, जहां का राजा अभिषिक्त न हुआ हो, एकाधिक राजा हों, राजत्व के लिए संघर्ष हो रहा हो, दो राजा हों, अराजकता हो अथवा निर्बल तन्त्र हो, क्योंकि ऐसे राज्य की प्रजा साधु को दारुण कष्ट पहुंचा सकती है। 120. वितण्डावादी 121. विभ्रमति 122. विनय 123. विराधना 124. विरुद्धराज्य अथवा वैराग्य 125. श्रमण 126. श्रावक 127. श्रुत केवली 128. स्थविर : वीतरागात्मा। नामान्तर से परिव्राजक, भिक्षु, यति, तपस्वी अथवा संन्यासी। यह संज्ञा जैन तीर्थंकर परम्परा के संन्यासी के लिए प्रयुक्त है। : जैन गृहस्थ। : जैन आगमज्ञ, तीर्थंकर, गणधर आदि। : वृद्ध, ज्येष्ठ, पुरातन पद्धति में नवीन प्रक्षेपण का विरोधी होने से श्रमण थेर, वृद्ध या स्थविर कहलाता था। : संघ के नियमानुसार संघ में रहने वाला श्रमण जो संघानुसार वस्त्र व उपकरण रखते हैं। : जैन परम्परा के श्रमणाचार में आकण्ठ डूबकर उबरने वाला 129 स्थविरकल्पी 130. स्नातक
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy