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________________ राजनीतिक एवं ऐतिहासिक विवरण • 269 परम्परा जो हिंसा से घृणा करती है तथा संस्कारों और बलि से जिसे कोई लगाव नहीं है। स्वभावत: राजा की दैवीय शक्ति को यज्ञों से निष्पन्न नहीं मान सकती। वह राजा जो वैदिक यज्ञ सम्पन्न करता है, हिंसा में युक्त होता है, वह स्वयं को भी सन्ताप देता है और दूसरों को भी यातना देने का भागीदार होता है। जहां बौद्ध धर्म में आदर्श राजा का चित्रण धार्मिक राजा के रूप में हुआ है जिसमें कि कुछ रहस्यमय शक्तियां निहित हैं, जैसे कि चक्रवर्ती राजा में महापुरुष के वह सभी गुण विद्यमान होते हैं जो कि बोधिसत्व में पाये जाते हैं 'महापुरीष लक्खनानि', वहां जैन धर्म में हमें राजर्षि परम्परा के दर्शन वैदिक धर्म के समान ही होते हैं। इस विषय में प्रो० गोविन्द्रचन्द्र पाण्डे का मत है कि राजर्षि की यह परम्परा जिसमें क्षत्रिय ऋषि के समान आचार और विचार रखे समन्वय की परम्परा का उदाहरण है।36 गीता में श्रीकृष्ण क्षत्रिय कुल के होकर अध्यात्म ज्ञान प्रदान करते हैं। 7 ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तरपूर्वी भारत के क्षत्रिय श्रमण परम्परा के समीप थे जबकि पश्चिमोत्तर भारत के क्षत्रिय पौराणिक वैदिक परम्परा के समीप थे जिसमें संसारवाद के विचारों का नैष्कर्म्य से सुन्दर समन्वय किया गया था। इन विचारों के प्रतिनिधि प्रवाहण जैबालि तथा वासुदेव कृष्ण थे। इस प्रसंग में यह उल्लेखनीय है कि एक ही कुल के दो व्यक्ति दो विभिन्न धाराओं श्रमण और ब्राह्मण के प्रतिनिधि बन गये थे क्योंकि उनके विचारों का मूल अध्यात्म होने पर भी अभिव्यक्ति भिन्न थी। यह थे, जैन तीर्थंकर अरिष्टनेमि व योगीश्वर भगवान कृष्ण।89 ___ अयोध्याराज सगर जो द्वितीय तीर्थंकर अजितनाथ के छोटे भाई थे, द्वितीय चक्रवर्ती राजा बने, इन्होंने अजितनाथ से प्रव्रज्या ली। रामायण के प्रथम अध्याय में इनका उपाख्यान मिलता है। श्रावस्तीराज समुद्र विजय के पुत्र मधवन तृतीय चक्रवर्ती सम्राट अपनी पत्नी भद्रा सहित भारतवर्ष का राज्य त्याग कर दीक्षित हुए। हस्तिनापुर नरेश अश्वसेन तथा महारानी सहदेवी के पुत्र चतुर्थ चक्रवर्ती सनत्कुमार राज्य त्याग कर तपस्वी का89 हुए।92 सोलहवें तीर्थंकर शान्तिनाथ, सत्रहवें कुन्थुनाथ जो इक्ष्वाकुवंश के चक्रवर्ती सम्राट थे तथा अट्ठारहवें अर भारतवर्ष का राज्य त्याग कर श्रमण बने।4 नवें चक्रवर्ती महापद्म हस्तिनापुर के राजा थे जिन्होंने राज्य त्यागा। इनके बड़े भाई विष्णु कुमार ने मुनि सुव्रत से दीक्षा ग्रहण की थी। हरिषेण काम्पिल्यराज महाहरी के पुत्र थे। यह दसवें चक्रवर्ती थे जिन्होंने राज्य त्याग कर जिन शासन स्वीकार किया। ग्यारहवें चक्रवर्ती जय समुद्रविजय के पुत्र थे। जिन्होंने हजार राजाओं के साथ राज्य त्यागा।”
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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