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________________ राजनीतिक एवं ऐतिहासिक विवरण • 259 भय उत्पन्न होता है। अपराधी को दण्डित होते देख कानून से चलने की प्रवृत्ति स्वभावतः उत्पन्न होती है जिसके फलस्वरूप दण्ड प्रयोग करना भी समाज में आवश्यक हो जाता है। इससे न केवल व्यक्ति का अपितु समाज का भी कल्याण होता है । उशनस के अनुसार सभी नीति राजनीति पर निर्भर हैं।' मनु ने दण्ड देने वाले व्यक्ति को राजा नहीं माना किन्तु दण्ड को ही शासक समझा है | " ऐसी परिस्थिति में शासकों के कर्तव्य व समाज के कल्याण को बताने वाले शास्त्र को दण्डनीति नाम देना सर्वथा उपयुक्त है। सोमदेव रचित नीति वाक्यामृत तथा हेमचन्द्र रचित लघ्वर्हन्नीति नामक दो परवर्ती जैन ग्रन्थों में राजनीति शास्त्र के विषय में जैन दृष्टिकोण का विवेचन प्राप्त होता है। ये दोनों ग्रन्थ महावीर द्वारा मागध राजा बिम्बिसार को दिये गये उपदेश का सार प्रस्तुत करने का दावा करते हैं। इन ग्रन्थों के अवलोकन से यही प्रतीत होता है कि अर्थशास्त्र के मान्य सिद्धान्त जैन आचार्यों को भी सामान्यतः स्वीकार्य थे और इस प्रसंग में उनका केवल विशेष आग्रह यह था कि राजा जैन धर्म में श्रद्धालु हो तथा यथासंभव निष्पक्ष एवं न्यायी हो और युद्ध से बचने का प्रयास करे। वे भी यह नहीं कहते कि राज्य के नियमों का अनुपालन बिना लोगों को दण्ड दिये चलाया जा सकता है अथवा यह कि युद्ध कदापि नहीं करना चाहिए। इन कार्यों में हिंसा अपरिहार्य है किन्तु राजकार्य के संदर्भ में इनसे सर्वथा बचे रह पाना कठिन है। हिंसा का सर्वथा परिहार केवल मिथकीय युगों में संभव था । ' महावीर कालीन राजनीतिक स्थिति भगवती सूत्र से ज्ञात होता है कि तीर्थंकर महावीर के समय भारत में राजनीतिक स्थिति बिखरी हुई थी। किसी एक शक्तिशाली राजा का आधिपत्य नहीं था। भारतवर्ष बहुत से स्वतन्त्र राजतन्त्रीय अथवा अराजतन्त्रीय राज्यों में बंटा हुआ था। भगवतीसूत्र में सोलह महाजनपदों की सूची प्राप्त होती है, जो इस प्रकार हैं- अंग, मगध, मलय, मालवक, अच्छ (रिक्ष), वच्छ (वत्स), कोच्छ कच्छ(कौत्स), पाद पाण्ड्य, लाढ (राढ) (पश्चिम बंगाल), वज्ज वज्जि (विदेह), मोली मल्ल (पावा) तथा कुशीनारा, काशी, कोसल, अवाह अभी तक समीकरण नहीं हो पाया तथा संमुन्तर सुमहोत्तर ।" लगभग यही सूची किंचित परिवर्तन के साथ बौद्धग्रन्थ अंगुत्तर निकाय में प्राप्त होती है। 12 इस सूची के अनुसार सोलह महाजनपद की गणना इस प्रकार है- काशी, कोसल, अंग, मगध, वज्जि (वृज्जि), मल्ल, चेतिय (चेदि), वंश (वत्स) कुरु, पांचाल, मच्छ (मत्स्यजयपुर), शूरसेन (मथुरा), अस्सक (अश्मक) अवन्ति, गन्धार तथा कम्बोज । दोनों ही सूचियों में अंग, मगध, वत्स, काशी तथा कोसल के नाम प्राप्त होते
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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