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________________ 50. दति 51. दिग्वत अथवा दिशा परिमाण व्रत 52. दुट्ठपारांचित 53. दुषमा 54. दैशावकाशिक 55. दोगुन्ददेव 56. धर्म 57. निग्गंथी 58. निन्हव 59. नियतिवाद 60. निर्ग्रन्थ पारिभाषिक शब्दावली • xxvii : एक बार हथेली पर दिया हुआ भोजन । : गमनागमन की मर्यादा निश्चित करना । 61. निर्जरा 62. निर्वाण 63. निवृत्ति 64. निःसृत 65. निर्धारि : यदि श्रमण गणधर आचार्य या शास्त्र की निन्दा करे तो ऐसे दुष्ट श्रमण के लिए दण्ड व प्रायश्चित का विधान । : दुर्भिक्षकाल अथवा दुष्काल । : जीवन पर्यन्त एक निश्चित क्षेत्र में रहने व उसका अतिक्रमण न करने का व्रत । : भोग परायण देव, इनकी तुलना यक्षों और गन्धर्वों से की जा सकती है। : उदात्त आचार-विचार जिनके अनुकरण, अनुसरण से मनुष्य समस्या ग्रस्त संसार को पाकर किनारे आ लगता है। तीर्थ का अर्थ है नदी का घाट । दर्शन में नदी की तुलना चलायमान कर्मप्रभाव या जन्मजन्मान्तर यात्रा से है। : निर्ग्रत्थिणी, जैन : संघ भेद । : मनुष्य पूर्वनिर्धारित लक्ष्य के अनुसार निश्चित भविष्य की ओर गतिशील होता है । प्रचलित भाषा में इसे भाग्य कहते हैं। जहां मनुष्य का पुरुषार्थ निष्फल है तथा मनुष्य कर्मफल का उत्तरदायी नहीं है। साधु । : ग्रन्थिहीन जो लल्जा आदि भावों से ऊपर उठे तथा जो पूर्ण अपरिग्रही हो, अपने पास वस्त्र, पात्र तथा अन्य उपकरण न रखने वाला साधु, दिगम्बर | : पूर्व कर्मबन्ध समाप्त होना । : बुझ जाना। मन की वृत्तियों और कर्म प्रभावों की पूर्ण समाप्ति अथवा मुक्ति । : संकल्पपूर्वक त्याग, मुक्ति के लिए संन्यास मार्ग का अनुसरण । : निकलना या प्रस्फुटित होना । : उपाश्रय से मृत श्रवण का शरीर बाहर निकालना।
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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