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समाज दर्शन एवं समाज व्यवस्था • 241
अथर्ववेद पंचमवेद इतिहास पुराण तथा षष्टमवेद निघण्टु को अंगों, उपांगों और रहस्य सहित कण्ठस्थ कर लेगा, उनका अर्थ जानेगा और स्मृति में रखेगा। वह साठ पर्यायों के दर्शन, सांख्य का विज्ञ, गणित में निष्णात, भाषा, कल्प, छन्द, रहस्य, निरुक्त और व्याकरण तथा ज्योतिषविद् होगा। वह खगोलशास्त्र का पण्डित साथ ही ब्रह्मविद्या व यति विद्या का ज्ञाता होगा।
धर्मशास्त्र के अनुसार ब्राह्मण के छ: प्रधान कर्तव्य थे-यजन याजन, अध्ययन अध्यापन, दान और प्रतिग्रह। किन्तु यथार्थ में अनेक ब्राह्मण न पुरोहित थे न आचार्य। कुछ प्रशासकीय कार्यों में अधिकृत थे और कुछ जमींदार अथवा क्षुद्र किसान और दरिद्र कर्मकार थे।
ब्राह्मणों को अधिकांशत: आध्यात्मिक वृत्ति का समझा जाता था। जैन ग्रन्थ उत्तराध्ययन ने कर्मनिष्ठ ब्राह्मण का चित्र इस प्रकार किया है कि जो संयोग में प्रसन्न नहीं होता, वियोग से खिन्न नहीं होता, आर्य वचन में रमण करता है, जो पवित्र है, अभय है, अहिंसक है, अचौर्यवृत्ति है, ब्रह्मचारी है, अनासक्त है, गृहत्यागी है, अकिंचन है, वही ब्राह्मण कहलाता है।
जैनागमों की टीकाओं में उल्लेख है कि भरत चक्रवर्ती ब्राह्मणों को प्रतिदिन भोजन कराते थे। काकिणी रत्न से चिन्हित कर उन्हें दूसरी जातियों से पृथक कर दिया था।46 राजा दानमान से उनके प्रति आदर व्यक्त करते थे। पाटलिपुत्र के नन्दराजाओं ने ब्राह्मणों को बहुतसा धन देकर उनके प्रति आदर व्यक्त किया था। जन सामान्य भी ब्राह्मणों का सम्मान करते थे।48 जन्म मरण आदि अवसरों पर ब्राह्मणों की पूछ होती थी और भोजन आदि से उनका सत्कार किया जाता था। किन्तु बौद्ध जातकों के युग में संहिता की दृष्टि से ब्राह्मणों को विशेषाधिकार नहीं थे और न ही उनके प्रति सहिष्णुतापूर्ण दृष्टिकोण प्रचलित था।
ब्राह्मणों में यज्ञ का प्रचलन था। श्रमण दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् अपने विहार के समय महावीर ने चम्पा के एक ब्राह्मण की अग्निहोत्र वसही में चातुर्मास व्यतीत किया था। ब्राह्मण स्वप्न पाठक होते थे। ब्राह्मण शुभ और अशुभ दिन और मुहूर्तों का प्रतिपादन करते थे।
खत्तिय (क्षत्रिय)
जैन सूत्रों में क्षत्रियों की प्रभुता का वर्णन है। कल्पसूत्र के अनुसार शक्र ने ब्राह्मणी देवनन्दा के गर्भ से महावीर के भ्रूण को क्षत्रियाणी त्रिशला के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया था। त्रिशला ने शिशु के रूप में महावीर को जन्म दिया।54
टी०डब्ल्यू० राइस डेविडस के अनुसार उस समय ब्राह्मणों की उच्च स्थिति स्वीकार नहीं की जाती थी। किन्तु ऐसा उचित प्रतीत नहीं होता। बौद्ध ग्रन्थ