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________________ 238 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति कि कर्मदायादोभवं। किन्तु इस बात की पुष्टि किसी भी ग्रन्थ से नहीं होती कि महावीर और बुद्ध के काल में वर्ण व्यवस्था सर्वथा गौण या नष्ट हो गयी। यही नहीं जातकों से यह भी ज्ञात होता है कि स्वयं बुद्ध के समय जन्म के आधार पर संघ में सर्वश्रेष्ठ आवास, भोजन और जल इस क्रम से देना उचित समझा जाता था : खत्तिय कुलपवज्जितो, ब्राह्मणाकुल पब्जजितो, गहपतिकुल पवज्जितो।। माहण (ब्राह्मण) जैन सूत्रों में ब्राह्मण के प्रति उपेक्षा का भाव प्रदर्शित किया गया है तथा अधिकतम बार इस बात की पुनरावृत्ति की है कि ब्राह्मण जैन धर्म के विरोधी थे। किन्त व्यावहारिक दृष्टि से विरोधी प्रचार प्रसार के उपरान्त भी ब्राह्मणों की स्थिति निर्विवाद रूप से सर्वोपरि थी। इसका कारण ब्राह्मण वर्ण की दैवीय उत्पत्ति के सिद्धान्त की मान्यता थी जिसके अनुसार ब्राह्मण विराट पुरुष के मुख से उत्पन्न हुए हैं। इस काल में भी ब्राह्मणों, अग्नि, गंगाजल और गाय को समान रूप से पवित्र माना जाता था। जैन सूत्रों में ब्राह्मणों की अपेक्षा क्षत्रियों को श्रेष्ठता प्रदान की गयी है। उनके सभी तीर्थंकर क्षत्रिय कुल में सर्वश्रेष्ठ होने के कारण उत्पन्न हुए थे। यहां तक कि स्वयं भगवान महावीर को ब्राह्मणी देवनन्दा को परित्याग कर क्षत्रियाणी त्रिशला के गर्भ में आना पड़ा।' कल्पसूत्र के इस कथन के आधार पर कि अरिहन्त क्षत्रिय कुल में जन्म लेते हैं तथा ब्राह्मण कुल की गणना हेय कुलों से की गयी है विद्वानों का एक वर्ग यह मानता है कि उस समय क्षत्रियों के नेतृत्व में ब्राह्मण विरोधी सामाजिक धार्मिक आन्दोलन हो रहा था। यह वर्ग संघर्ष था जबकि क्षत्रिय वर्ग अपनी प्रभुता के बल पर ब्राह्मण धर्म की सर्वोच्चता को हीन कर स्वयं सर्वोच्च हो जाना चाहता था। ब्राह्मणों की उच्च स्थिति के एक मात्र आधार ब्रह्म ज्ञान पर भी क्षत्रिय अधिकार जमा लेना चाहते थे। यह प्रतिक्रिया ब्राह्मण विरोधी जैन और बौद्ध धर्म द्वारा तो हई ही स्वयं ब्राह्मण वर्ग में भी उपनिषदों द्वारा परिलक्षित हई। क्षत्रिय यज्ञ हिंसा, पौरोहित्य और कर्मकाण्ड की आलोचना करने लगे तथा ब्रह्मज्ञानी होने का प्रयास करने लगे। कुछ क्षत्रिय इस युग में बौद्धिक जीवन के सिरमौर भी बन गये थे। उपनिषदों में अनेक ज्ञानी राजाओं का वर्णन है जिनमें पांचाल राज प्रवाहणजैबालि प्रमुख हैं जिसने श्वेतकेतु के पिता उद्दालक को उपदेश दिया।2 कैकेयराज अश्वपति और काशीराज अजातशत्रु भी ऐसे ही उदाहरण हैं। राजा जनक राजर्षि के रूप में सुख्यात थे ही। महाभारत में कृष्ण क्षत्रियकुल में उत्पन्न होकर भी ज्ञान के आगार थे। बुद्ध और महावीर भी जन्मना क्षत्रिय थे। डा. गोविन्दचन्द्र पाण्डे ने इस अवधारण का प्रत्याख्यान किया है। उनके
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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