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________________ जैन नीतिशास्त्र का स्वरूप • 219 (4) सुखानुबन्ध-अतीत के सुखों को दोहराना। (5) निदान-भविष्यत समृद्धि की अपेक्षा। श्वेताम्बर परम्परा संलेखना के अतिचारों को इस प्रकार बताती है-51 (1) इहलोकाशंसा–संसार के लिए तीव्र इच्छा। (2) परलोकाशंसा-दूसरे लोक की तीव्र इच्छा। (3) जीविताशंसा–जीवन की इच्छा। (4) मरणाशंसा-मृत्यु की इच्छा। (5) कामभोगाशंसा-इन्द्रिय सुखों की इच्छा। श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएं प्रतिमा का अर्थ है प्रतिज्ञा विशेष, नियम विशेष, व्रत विशेष, तप विशेष अथवा अभिग्रह विशेष।252 यह प्रतिमाएं साधना की क्रमश: बढ़ती हुई अवस्थाएं हैं। अत: उत्तरवर्ती प्रतिमाओं में पूर्ववर्ती प्रतिमाओं का समावेश स्वयं ही हो जाता है। जब श्रावक ग्यारहवीं तथा अन्तिम प्रतिमा की आराधना करता है तब उसमें प्रारम्भ से अन्तिम तक समस्त प्रतिमाओं के गुण रहते हैं। श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएं ये हैं : (1) दर्शन श्रावक प्रतिमा, (2) कृतव्रत श्रावक प्रतिमा, (3) कृत सामायिक प्रतिमा, (4) पौषधोपवास निरत, (5) दिन में ब्रह्मचारी और रात्रि में परिमाण करने वाला। (6) दिन और रात में ब्रह्मचारी, स्नान न करने वाला, दिन में भोजन करने वाला और कच्छा न बांधने बाला। (7) सचित्त परित्यागी, (8) आरम्भ परित्यागी, (9) प्रेष्य परित्यागी, (10) उदिष्ट भक्त परित्यागी, तथा (11) श्रमण भूत।253 उक्त प्रतिमाएं दिगम्बर परम्परा के अनुसार हैं, श्वेताम्बर परम्परा में एकादश
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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