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________________ 206 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति कारण महावीर का कठोर अपरिग्रह व्रत था। वस्त्र पहनने की परम्परा श्वेताम्बरों में है। दिगम्बर आचार्य कुन्दकुन्द ने भिक्षुओं को वस्त्र पहनने का निषेध किया है।182 उल्लेखनीय है कि ब्राह्मण परम्परा में यह नियम संन्यासियों के लिए बने हैं, गृहस्थों द्वारा इनके पालन का योगसूत्र से पूर्व कोई उल्लेख नहीं मिलता। पतंजलि ने सर्वप्रथम पांच अणुव्रतों को गृहस्थों के लिए प्रतिपादित करने पर विचार किया। मूल ब्राह्मण परम्परा में गृहस्थ यजन, अध्ययन और दान को ही सद्गुण समझते थे और संन्यास की अपेक्षा इन्हीं सद्गुणों से निर्दिष्ट होते थे। श्रमण परम्परा के अनुसार गृहस्थ जीवन श्रमण जीवन की ओर प्रयाण है। अत: आरम्भ से ही श्रावक के निवृत्तिमार्गी सद्गुणों का आंशिक रूप में पालन कराया जाता था। श्रमण इनका पूर्णता से पालन करते थे। __ इस प्रकार पांच सद्गुणों की छान्दोग्य उपनिषद से आरम्भ की हुई यात्रा योगसूत्र के पांच यमों पर आकर ठहरी। जैन निवृत्ति धारा ने बाह्मण परम्परा को प्रभावित किया और दान जैसे सद्गुण को अपरिग्रह जैसे संन्यास गुण से स्थानापन्न किया। अपरिग्रह पर आत्यन्तिक आग्रह महावीर की जैन परम्परा को मौखिक देन है। मूल रूप में ब्राह्मण परम्परा किसी व्यक्ति के पूर्ण युवावस्था में संसार त्याग के पक्ष में नहीं थी। सांसारिक जीवन के कर्तव्यों को पूर्ण करने के उपरान्त ही व्यक्ति अवकाश प्राप्त कर लेने पर, वन में जाकर संन्यासवृत्ति अपना सकता था, चिन्तन कर सकता था। किन्तु श्रमण परम्परा ने इस दृष्टि से भी ब्राह्मण परम्परा को प्रभावित किया कि उनकी चतुराश्रम व्यवस्था उसी रूप में तो चलती ही रही किन्तु इस नये विचार को भी स्वीकार कर लिया गया कि ज्यों ही मन में वैराग्य भावना उदित हो व्यक्ति गृह त्याग सकता है। अहिंसाणुव्रत वैदिककालीन आर्य प्रवृत्तिवादी थे। आध्यात्मिक उपलब्धि की ज्ञान की ओर रुझान की चिन्तना का धरातल उनके पास नहीं था। वह युद्ध की संस्था को प्रतिष्ठित करते थे क्योंकि उसका परिस्थितिजन्य मूल्य था, शत्रुओं का दमन। उत्तरवैदिक काल में यज्ञ की संस्था प्रतिष्ठित हो गयी थी। महावीर के युग में पशु निर्दयता से यज्ञों में बलि चढाये जाते थे जिन्हें महावीर ने सहानुभूति और करुणा की भाव प्रवणता के प्रसार द्वारा रोका। यद्यपि जैन तथा बौद्ध धर्म ने अहिंसा को परिपूर्णता पर पहुंचाया किन्तु ब्राह्मण परम्परा भी अहिंसा की अवधारणा से अपरिचित नहीं थी। महाभारत में अहिंसा परमोधर्मः का नाद सुनाई देता है। अष्टादश पुराणों के सम्यक् परिशीलन के
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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