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________________ जैन नीतिशास्त्र का स्वरूप • 201 आयु कर्म के दलिकों की विच्युति अथवा प्रतिक्षण आयु की विच्युति, आवीचि मरण कहलाता है। 47 वीचि का अर्थ है तरंग। समुद्र और नदी में प्रतिक्षण लहरें उठती हैं। वैसे ही आयुकर्म भी प्रति समय उदय में आता है। प्रत्येक समय का मरण आवीचि मरण कहलाता है।।48 जीव एक बार नरक आदि जिस गति में जन्म मरण करता है तो उसे अवधि मरण कहा जाता है।149 जीव वर्तमान आयुकर्म के पुद्गलों का अनुभव कर मरण को प्राप्त हो, फिर उस भव में उत्पन्न न हो ते उस मरण को आत्यन्तिक मरण कहा जाता है। 50 इसे आद्यन्त मरण भी कहा जाता है। जो संयमी जीवन पथ से भ्रष्ट होकर मृत्यु पाता है, उसकी मृत्यु को बलन्मरण कहा जाता है।।51 भूख से तड़पते हुए मरने को भी बलन्मरण कहा जाता है।।52 दीपकलिका में शलभ की तरह जो इन्द्रियों के वशीभूत होकर मृत्यु पाते हैं, उसे वशात मरण कहा जाता है।।53 इसके चार भेद हैं-इन्द्रिय-वशात, वेदना वशार्त, कषाय वशार्त तथा नो कषाय वशात।।54 __शरीर मे शस्त्र की नोक इत्यादि रहने से जो मृत्यु होती है वह द्रव्य अन्त: शल्य मरण कहलाता है। लज्जा और अभिमान आदि के कारण अतिचारों की आलोचना न कर दोषपूर्ण स्थिति में मरने वाले की मृत्यु को भाव अन्तः शल्य मरण कहा जाता है। 55 वर्तमान भव जन्म से मृत्यु होती है, उसे तद्भव मरण कहा जाता है। 56 मिथ्यात्वी और सम्यक्दृष्टि का मरण बाल मरण कहलाता है। 57 विजयोदया में बाल मरण के पांच भेद किये गये हैं (क) अव्यक्त बाल : छोटा बच्चा जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को नहीं जानता तथा इनका अचरण करने में समर्थ नहीं होता। (ख) व्यवहार बाल : लोक व्यवहार, शास्त्रज्ञान आदि को जो नहीं जानता। (ग) ज्ञान बाल : जो जीव आदि पदार्थों को यथार्थ रूप से नहीं जानता। (घ) दर्शन बाल : जिसकी तत्वों के प्रति श्रद्धा नहीं होती। __ अग्नि, धूप, शस्त्र, विष, पानी, पर्वत से गिरकर श्वासोच्छवास को रोककर अति सर्दी या गर्मी होने से भूख और प्यास से, जीभ को उखाड़ने से, प्रकृति विरुद्ध आहार करने से इन साधनों के द्वारा जो इच्छा से प्राण त्याग करता है, वह इच्छा प्रवृत्त दर्शन बाल मरण कहलाता है। योग्यकाल में या अकाल में मरने की इच्छा के विरुद्ध जो मृत्यु होती है, वह अनिच्छा प्रवृत्त व दर्शन बाल मरण कहलाता है। (ङ) चारित्र बाल : जो चारित्र से हीन होता है। विषयों में आसक्त दुर्गति में जाने
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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