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________________ 192 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति (11) शय्या परीषह तपस्वी और प्राणवान भिक्षु उत्कृष्ट या निकृष्ट उपाश्रय को पाकर मर्यादा का अतिक्रमण न करे हर्ष या शोक न लाये। जो पाप दृष्टि होता है वह मर्यादा का अतिक्रमण कर डालता है।78 (12) आक्रोश परीषह कोई मनुष्य भिक्षु को गाली दे तो वह उसके प्रति क्रोध न करे। क्रोध न करने वाला भिक्षु पुरुष, दारुण और ग्राम कण्टक प्रतिकूल भाषा को सुनता हुआ उसकी उपेक्षा करे, मन में न लाये। (13) वध परीषह संयत और दान्त श्रमण को कोई कहीं पीटे तो उसकी आत्मा का नाश नहीं होताऐसा चिन्तन करे, पर प्रतिशोध की भावना न लाये।80 (14) याचना परीषह गोचराग्र में प्रविष्ट मुनि के लिए गृहस्थों के सामने हाथ पसारना सरल नहीं है। अत: गृहवास ही श्रेय है-मुनि ऐसा चिन्तन न करे। (15) अलाभ परीषह गृहस्थों के घर भोजन तैयार हो जाने पर मुनि उसकी एषणा करे। आहार थोड़ा मिलने या न मिलने पर संयमी मुनि अनुताप न करे।82 (16) रोग परीषह आत्मगवेषक मुनि चिकित्सा का अनुमोदन न करे। रोग हो जाने पर समाधिपूर्वक रहे। उसका श्रामण्य यही है कि वह रोग उत्पन्न हो जाने पर भी चकित्सा न करे, न कराये।
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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