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________________ जैन नीतिशास्त्र का स्वरूप • 185 नाक का मैल, आहार, उपधि, शरीर या उसी प्रकार की दूसरी कोई उत्सर्ग करने योग्य वस्तु का उपयुक्त स्थान में उत्सर्ग करे | 36 जो स्थण्डिल अर्थात् स्थल बनापात असंतोक जहां लोगों का आवगमन नहीं हो तथा वह दूर से भी दिखाई नहीं देते हों, पर के लिए अनुप घातकारी, सम, अशुषिर अर्थात् पोले या दरार रहित, कुछ समय पहले ही निर्जीव बना हुआ, " कम-से-कम चार अंगुल की निर्जीव परत वाला, गांव आदि से दूर, बिल रहित और त्रस प्राणी तथा बीजों से रहित हो - उसमें उच्चार आदि का उत्सर्ग करे | 38 यह विधि अहिंसा की पोषक होने के साथ सभ्यजन सम्मत भी है । इन पांच समितियों का पालन करने वाला मुनि जीवाकुल संसार में रहता हुआ भी पापों से लिप्त नहीं होता। 39 जिस प्रकार दृढ़ कवचधारी योद्धा बाणों की वर्षा होने पर भी नहीं बींधा जा सकता, उसी प्रकार समितियों का सम्यक् पालन करने वाला मुनि साधु जीवन के विविध कार्यो में प्रवर्तमान होता हुआ भी पापों से लिप्त नहीं होता 140 गुप्ति गुप्ति का अर्थ है निवर्तन। जिस प्रकार क्षेत्र की रक्षा के लिए बाढ़, नगर की रक्षा के लिए खाई या प्राकार होता है, उसी प्रकार श्रामण्य की सुरक्षा के लिए, पाप निरोध के लिए गुप्ति है। 1 महाव्रतों की सुरक्षा के तीन साधन हैं (1) रात्रि भोजन की निवृत्ति । (2) आठ प्रवचन माताओं में जागरूकता । (3) भावना संस्कारापादन- एक ही प्रवृत्ति का पुन: पुन: अभ्यास। इस प्रकार महाव्रतों की परिपालना समिति गुप्ति सापेक्ष है। इनके होने पर महाव्रत सुरक्षित रहते हैं और न होने पर असुरक्षित | 12 यह गुप्ति तीन हैं (1) मनोगुप्ति-असत् चिन्तन से निवर्तन | 3 (2) वचन गुप्ति-असत् वाणी से निवर्तन | 44 (3) काय गुप्ति-असत् प्रवृत्ति से निवर्तन। मानसिक तथा वाचिक संकलेशों से पूर्णतः निवृत्त होना मनोगुप्ति तथा
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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