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________________ 150 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति को धारण नहीं किया जा सकता है। उपवास, भोजन का नहीं मिलना, तरह-तरह के दुस्सह अन्तराय, एक स्थान, अचेलता, मौन, ब्रह्मचर्य, भूमि पर शयन बड़े कठिन आचरण हैं। शान्त्याचार्य ने कहा कि चरित्र से भ्रष्ट जीवन अच्छा नहीं है। यह जैन मार्ग को दूषित करता है। भगवान ने निर्ग्रन्थ प्रवचन को ही श्रेष्ठ कहा है । उसको छोड़कर अन्य मार्ग का अवलम्बन लेना मिथ्यात्व है। इस पर रुष्ट होकर उस शिष्य ने दीर्घदण्ड से गुरु के सिर पर प्रहार किया। तब वह शिष्य संघ का स्वामी बन गया तथा प्रकट रूप से श्वेताम्बर बन गया। वह उपदेश देने लगा कि सग्रन्थलिंग से मोक्ष की प्राप्ति होती है। अपने अपने ग्रहण किये पाखण्डों के सदृश उन लोगों ने शास्त्रों की रचना की और उनकी व्याख्या करके उन लोगों में उसी प्रकार के आचरण की प्रवृत्ति चला दी। 334 अर्धफालक सम्प्रदाय हरिषेणकृत बृहत्कथाकोष में उल्लेख है कि दुर्भिक्ष के कारण श्रुतकेवली भद्रबाहु दक्षिणापथ को चले गये। सुभिक्ष होने पर भद्रबाहु का शिष्य विशाखाचार्य समस्त संघ के साथ दक्षिणापथ से मध्यदेश लौट आया। इन्होंने वहां से लौट कर कहा कि सिन्धुदेश में लोग दुर्भिक्ष पीड़ितों के शोर के कारण दिन में नहीं खा पाते, इससे रात को खाते थे। उन्होंने विशाखाचार्य आदि से कहा कि वह भी रात में उनके घर से पात्र लेकर आहर ले जाया करें। तब साधु रात्रि में आहार लाने लगे। एक दिन एक कृशकाय निर्ग्रन्थ हाथ में भिक्षापात्र लेकर साधु के घर गया । अन्धेरे में उस नग्नमुनि को देखकर एक गर्भिणी श्राविका का गर्भपात हो गया। तब श्रावकों ने आकर साधुओं से आग्रह किया कि जब तक स्थिति ठीक नहीं होती तब तक बाएं हाथ से अर्धफालक अर्थात् आधेवस्त्रखण्ड को आगे करके और दाहिने हाथ में भिक्षापात्र लेकर रात्रि में आहार लेने के लिए आया करें। सुभिक्ष होने पर पुन: तप में संलग्न हो जाएं। श्रावकों का वचन सुनकर यतिगण वैसा ही करने लगे। सुभिक्ष होने पर रामिल्ल, स्थविर स्थूलभद्राचार्य ने सकलसंघ से अर्धफालक छोड़ निर्ग्रन्थ धर्म के अनुपालन का आग्रह किया । जिन्हें गुरु का वचन रुचिकर नहीं हुआ उन शक्तिहीनों ने अर्धफालक सम्प्रदाय को प्रचलित किया | 335 काम्बल तीर्थक सौराष्ट्र की वलभी नामक नगरी में वप्रवाद नामक मिथ्यादृष्टि राजा था। उसकी पटरानी स्वामिनी अर्धफालक साधुओं की भक्त थी । अर्धफालक संघ को देखकर
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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