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________________ 120 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति प्रवेशार्थी की योग्यता की पुष्टि के लिए तथा संघ की अपनी सन्तुष्टि के लिए परिवीक्षा काल निर्धारित किया गया था। आरम्भ में बौद्ध संघ में प्रवेश प्रव्रज्या तथा पुष्टीकरण उपसम्पदा साथ-साथ चलती थी किन्तु बाद में इन दोनों के बीच के अन्तराल को प्रार्थी का परिवीक्षा का काल समझा जाने लगा। 11 बौद्ध संघ में उपसम्पदा पुष्टीकरण को पृथकरूप से आयोजित किया जाता था तथा इस विषय में विस्तृत नियम बने हुए थे ताकि कहीं अवांछनीय व्यक्ति की पुष्टि भिक्षु के रूप में न हो जाये। ठीक इसी प्रकार जैन संघ में भी सेह अर्थात् नवश्रमण को कम से कम एक सप्ताह तथा ज्यादा से ज्यादा छ: माह तक परिवीक्षा पर रखा जाता था। औसतन यह काल चार माह का माना जाता था। 52 इस अवधि में सेह एक सच्चे भिक्षु की जीवन पद्धति अंगीकार करने का यत्न करता था तथा इस प्रकार निष्कर्ष रूप में उत्थावना सावधानी के व्रतों को करने के पश्चात् पुष्टीकरण की योग्यता अर्जित कर लेता था । 153 इस काल में सेह को आचार्य या उपाध्याय के निर्देशन में रहना होता था। कोई भी व्यक्ति अयोग्य व्यक्ति की संघ में अनुशंसा नहीं कर सकता था अन्यथा उसे दण्ड का भागी होना पड़ता था । 1 54 गुरु-शिष्य सम्बन्ध सेह जैन संघ में प्रविष्ट सार्धविहारी को सेह के नाम से जाना जाता था। वह छ: माह, चार माह अथवा एक सप्ताह के लिए परिवीक्षा पर रहता था । 155 परिवीक्षा में उत्तीर्ण होने पर ही वह संघ का नियमित सदस्य बनता था। 156 इसके पश्चात् वह अन्तेवासी S7 हो सकता था। यहीं से शिष्य की मुनि जीवन की साधना आरम्भ हो जाती थी। मुनि जीवन की साधना के लिए दो अनुबन्ध हैं (1) सम्बन्धों का त्याग, तथा (2) इन्द्रिय और मन की उपशान्ति । आरम्भिक अनुबन्धों की पूर्ति के पश्चात् अन्तेवासी को साधन की तीन भूमिकाओं से निकलना पड़ता था । 1 58 (अ) प्रथम भूमिका प्रव्रजित होने से लेकर अध्ययन काल तक की है। इसमें उसे ध्यान का अल्प अभ्यास तथा श्रुत अध्ययन के लिए आवश्यक तप करना होता था। (ब) दूसरी भूमिका शिष्यों के अध्यापन और धर्म के प्रचार प्रसार की है। इसमें वह ध्यान की प्रकृष्ट साधना और कुछ लम्बे उपवास करना था। 159
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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