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________________ आगमकालीन धार्मिक एवं दार्शनिक विचार • 97 222. आचारांग, चतुर्थ अध्ययन, द्वितीय उद्देशक। 223. वही, अष्टम अध्ययन, विमोह। 224. सूत्रकृतांग में यही सूत्र है जहां उन्हें कुछ व्यक्ति कहा गया है। शीलांक कुछ व्यक्ति से तात्पर्य बौद्ध और बार्हस्पत्य साधुओं तथा ब्राह्मणों से लगाते हैं। द्र. सूत्रकृतांग एस.बी.ई., 1/1/161 225. आयारो, शस्त्रपरिज्ञा, सूत्र 58-60, पृ. 62। 226. वही, लोकविजय, सूत्र 150, पृ. 118। 227. सूत्रकृतांग-1, 6/26-42, पृ. 3641 228. वही, भाग-2,6/31-331 229. वही, 2,6/35-391 230. वही, एस.बी.ई. जि.45-1, 1/2/17 231. दीपिका में ‘गानय' का अर्थ 'ज्ञानक' अर्थात् पण्डित मान्य किया गया है। जैकोबी के अनुसार यह शब्द यान" से निष्पन्न है जिसका अर्थ हीनयान महायान जैसे सम्प्रदाय को इंगित करना है। द्र. जैनसूत्रज भाग-2, पृ. 238 पादटिप्पण 41 232. सूत्रकृतांग-1,3/4/61 233. जैकोबी कहते हैं कि मोक्ष भी आनन्द की वस्तु है अत: यह आनन्ददायक सुखमय जीवन से ही प्राप्त हो सकता है। 234. उत्तराध्ययन (एस.बी.ई. जि. 45), 18/23, पृ. 83। 235. द्र. महावग्ग, 31/2 जि. पृ. 109 तु. सूत्रकृतांग 1/62 तथा 2/2/661 236. सूत्रकृतांग, 1/12/7, पृ. 317। 237. वही, (एस.बी.ई.), 1/12/81 238. शीलांक के अनुसार यह मत शैवमत है। सूत्रकृतांग-1, 1/3/14। 239. वही, 1/4/7-81 240. वही, यहां पुराणकारों का तात्पर्य मूर्छा अथवा सुषुप्तावस्था से है। 241. सूत्रकृतांग एस.बी.ई.-1, 1/1/0, पृ. 2371 242. वही, भाग-1, 1/3/7-91 243. वही, 2/3/6 सम्भवत: यहां योगदर्शन की चर्चा है। 244. वही, 12/3 जैकोबी की पादटिप्पणी, पृ. 3161 245. उत्तराध्ययन, 18/231 246. जैकोबी की टिप्पणी-2, जैनसूत्रज भाग-2, पृ. 83। 247. शीलांक के अनुसार यहां गोशालकवादी तथा त्रैराशिक मतवादियों की चर्चा है। त्रैराशिक वैशेषिक दर्शन को मानने वाले जैन अनुयायी थे। त्रैराशिक के प्रवर्तक खालुक रोहगुप्त थे। यह मुक्त और शुद्ध के अतिरिक्त एक तीसरी अवस्था भी स्वीकार करने के कारण त्रैराशिक कहलाते हैं। द्र. सूत्रकृतांग हेमचन्द्र -1:1/3/12-13, पृ. 2451 248. सूत्रकृतांग (अमरमुनि) 2, 1/11 पृ. 59-671 249. अज्ञो जन्तुर नीशो यमात्मनः सुखदुःखयो। ईश्वरप्रेरितो गच्छेत्सवर्ग वा श्वभ्रमेव वा।। 250. एक एव हि भूतात्मा, भूते-भूतेव्यवस्थितः। एकधा बहुथा चैव, दृश्यते जल चन्द्रवत।। 251. पुरुष एवंद सर्व यद्भूतं यच्चभाव्यम्। सूत्रकृतांग (आचार्य हेमचन्द्र), पृ. 63।
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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