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________________ 74 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति जीव भी मर जाता है। शरीर के नष्ट होते ही जीव भी नष्ट हो जाता है। शरीर रहता है तभी तक जीव रहता है। यह प्रत्यक्ष है कि जब तक पांच भूतों वाला शरीर जीता है तभी तक यह जीव जीता रहता है। अत: शरीर से भिन्न जीव का अस्तित्व किसी भी प्रमाण से प्रमाणित नहीं होता। अपने मत के समर्थन में वह निम्न युक्तियां देते हैं 1. मरने के पश्चात् मृत व्यक्ति को जलाने के लिए जो लोग श्मशान जाते हैं, वह उसे जलाकर अकेले घर लौटते हैं, उनके साथ मृत व्यक्ति का, जीव नामक कोई भी पदार्थ लौट कर नहीं आता। 2. जब शरीर का क्रियाकर्म होता है तब जीव नामक कोई पदार्थ शरीर छोड़कर अलग जाता हुआ दिखाई नहीं देता। शरीर के अतिरिक्त कोई जीव नहीं है। यही ज्ञान यथार्थ है और सर्वश्रेष्ठ प्रमाण प्रत्यक्ष से प्रमाणित है। 3. जो वस्तु अन्य से भिन्न है उसे अलग करके दिखाया जा सकता है। उदाहरण के लिए तलवार म्यान से भिन्न है और उसकी यह भिन्नता दिखाई जा सकती है किन्तु जो तत्वस्वरूप है उसे पृथक दिखाना शक्य है। यही कारण है कि आत्मा को शरीर से अलग करके नहीं दिखाया जा सकता। इस प्रकार इन नास्तिकों तज्जीव तच्छरीरवादियों के अनुसार नाना प्रकार के दु:खों को सहन करना मूर्खता है। कोई क्रिया शुभ या अशुभ नहीं होती, न कोई पुण्य होता है और न पाप। न उसके फलस्वरूप स्वर्ग या नरक है। कर्म और उसके फलस्वरूप मोक्ष नहीं है, सुख और दुख भी नहीं है, पुण्य और पाप का फल भी नहीं है। अतएव नास्तिकों का कथन है, खूब खाओ, पीओ और मौज करो। शरीर नष्ट होते ही सब नष्ट हो जाता है। वापिस कोई लौटकर नहीं आता। सब उपभोग के साधन और सामग्री व्यर्थ हो जाते हैं। नरक से डरना मूर्खता है। कर्ज लेकर भी घी पीना चाहिए। नि:शंक होकर नास्तिक हिंसा आदि कुकृत्यों में रात-दिन पचा रहता है। विषय भोगों को प्राप्त करना ही बुद्धिमान का कर्तव्य है। उसके लिए नाना कुकर्म भी करने पड़े तो मत हिचकिचाओ। किन्तु जैनमत इस मत की कठोर आलोचना करते हुए इसे मिथ्यामत मानते हैं।213 सांख्यमत अथवा एकदण्डी मत सांख्यवादी मानते थे कि पांच तत्व के अतिरिक्त आत्मा नामक छह तत्व हैं। यह छहों तत्व शाश्वत हैं, अविनाशी हैं। वस्तुएं नित्यभव हैं अर्थात् स्वभाव से ही सत हैं।214 सांख्यवादियों के अनुसार पदार्थ की न तो उत्पत्ति होती है और न विनाश
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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