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________________ 72 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति दिगम्बर का ऐसा वर्णन है कि वह पात्र में से (अनुमान से गृहस्थों के पात्र से) भोजन करने के लिए लांछित किये गये हैं।202 सूत्रकृतांग में ही आर्द्रक और गोशालक के वार्तालाप के मध्य भी आजीवकों को इस पाप का दोषी बताया गया है कि वह ऐसे भोजन के लिए इच्छुक रहते हैं जो विशेष रूप से उन्हीं के लिए बनाया गया हो।203 वस्तुत: बौद्धों के विचार में अचेलकों के भोजन समबन्धी विचार व्यर्थ थे, बल्कि उपहासात्मक थे। वहीं जैनों के विचार में आजीवकों का आचार गृहस्थों से कुछ ही बेहतर था तथा कठोरता की दृष्टि से ढीला था। लोकायत मत भौतिकवाद या चार्वाक महावीर के काल में पूर्णतया भौतिकवादी चार्वाक अथवा लोकायत मत सुविख्यात था जो आत्मा, देवता तथा भविष्य जीवन के अस्तित्व को अस्वीकार करता था।204 इस मत की ओर इंगित करते हुए सूत्रकृतांग में उल्लेख है कि इस मत के मानने वाले केवल पांच महाभूतों की सत्ता में ही विश्वास करते हैं। उनके अनुसार पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन पांच महाभूत से ही नए तत्व आत्मा का आर्विभाव होता है।205 ___वस्तुतः लोकायतिक मनुष्य को एक प्राकृतिक और सामाजिक प्राणी मानते थे न कि एक अप्राकृतिक आध्यात्मिक जीव। फलत: उसने मनुष्य का चरम भाग्य लोकोत्तर न मानकर सर्वथा लौकिक ही माना है। उपयासपूर्वक सुख का उपभोग ही इनका मूलप्रेरक था। लोकायतिक व्यक्ति के लिए सुखभोग के अधिकतम सम्पादन पर और राज्य के लिए अर्थ के अधिकतम संग्रह पर बल देते थे।206 इसी मत को बौद्धग्रन्थों में नामान्तर से उच्छेदवाद कहा गया है। यह मत आत्मा के अविनाशी और शाश्वत सिद्धान्त का विरोधी था। इस मत के अनुसार पंचस्कन्धरूप शरीर के उच्छेद के साथ कुछ भी शेष नहीं रहता। सामंज्जफल सुत में अजितकेशकम्बलि नामक आचार्य का उल्लेख मिलता है।207 इसी प्रकार बौद्ध और जैन ग्रन्थों में पायासि पएसि नामक भौतिकवादी विचारक का उल्लेख आता है जो आत्मा की सत्ता को प्रत्यक्ष की कसौटी पर जांचना चाहता था।208 उत्तरकाल में विकसित लोकायत चार्वाक मत के अनुसार भी प्रत्यक्ष ही प्रमाण था। इतना निश्चित है कि आगमों की रचना के पूर्व नास्तिक भौतिकवादी विचारधारा अस्तित्वशील थी। यह विचार प्रत्यक्षवादी होने के कारण पुनर्जन्म स्वर्ग आदि में अविश्वास रखते थे। इसलिए लोकायतिक वैदिक यज्ञ आदि का उतना ही विरोध करते थे जितना बौद्ध और जैन। वस्तुत: दर्शनशास्त्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रश्न यह रहा है कि यह लोक
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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