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________________ द्वीन्द्रियादि जीव मूलपाठ - बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदियाणं जेहिं ठाणेहिं नेरइयाणं असीइभंगा तेहिं ठाणेहिं असीइं चेव। णवरं-अमहिया सम्मत्ते, आमिणिबोहियणाणे, सुयणाणे य एएहिं असीइभंगा। जेहिं ठाणेहिं णेरइयाणं सत्तावीसं भंगा तेसु ठाणेसु सव्वेसु अभंगयं । ___पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिया जहा नेरइया तहा माणियव्वा। णवरं-जेहिं सत्तावीसं भंगा तेहिं अभंगयं कायव्वं । जत्थ असीति तत्थ असीतिं चेव। ___ संस्कृत-छाया - द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रियाणां यैः स्थानै नैरयि-काणाम् अशीतिम॑गस्तैः स्थानैरशीतिश्चैव। नवरम्- अभ्यधिकाः सम्यक्त्वे, आमिनिबोधिकज्ञाने, श्रुतज्ञाने च एतैरशीतिर्भङ्गाः ।यैः स्थानैरयिकाणां सप्तविंशतिर्भङ्गास्तेषु स्थानेषु सर्वेषु अभङ्गगकम्। पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिका यथा नैरयिकास्तथा भणितव्याः, नवरम् यः सप्तविंशतिर्भगाः नैरभङ्गकम् कर्त्तव्यम् । यत्राशीतिस्तत्राशीतिश्चैव। शब्दार्थ जिन स्थानों में नारक जीवों के अस्सी भंग कहे हैं, उन स्थानों से द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चौ-इन्द्रिय जीवों के भी अस्सी भंग होते हैं। विशेषता यह है कि-सम्यक्त्व, आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान-इन तीन स्थानों में भी द्वीन्द्रिय आदि जीवों के अस्सी भंग होते हैं यह बात नारकी जीवों से अधिक है। तथा जिन स्थानों में नारकी जीवों के सत्ताईस भंग कहे हैं, उन सभी स्थानों में यहां अभंगक है-अर्थात् कोई भंग नहीं होते। जैसा नैरयिकों के विषय में कहा, वैसा ही पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिवाले जीवों के विषय में समझना चाहिए। विशेषता यह है कि-जिन स्थानों में ५० श्री जवाहर किरणावली 686960०००००००००००००००००००००००6868888888888880606660080606686030360608886660860333
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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