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________________ तो कौन खुशी-खुशी नहीं दे देगा? सारांश यह है कि जल दुनिया के लिए अत्यावश्यक पदार्थ है। उसका दुरुपयोग करना उचित नहीं है। किन्तु जल छानने आदि की यतना रखनी चाहिए। जल के जीवों की रक्षा करने से आपके आत्मा की और शरीर की भी रक्षा होगी। बिना छाना पानी पीने से कभी-कभी प्राण जाने की संभावना रहती है। बहुत से लोग मुंहपत्ती बांधने में भी शर्माते हैं। उन्हें यह नहीं मालूम कि धर्म-पालन में शर्म की क्या बात है? धर्म की दृष्टि से न सही, स्वास्थ्य की दृष्टि से ही विचार करें तो मुंहपत्ती की उपयोगिता का पता चल सकता है। सामाजिक सभ्यता के लिहाज से भी मुंह के सामने कपड़ा रखना आवश्यक समझा जाता है। कहा जा सकता है क्या मुंहपत्ती बिना समाज का आदमी नहीं समझा जा सकता। इसका उत्तर यह है कि क्या पगड़ी बांधे बिना मनुष्य नहीं कहला सकता? पगड़ी बांधे बिना भी मनुष्य, मनुष्य कहलाता है फिर भी सभ्यता के लिए पगड़ी बांधी जाती है। इसी प्रकार धार्मिक सभ्यता की भी रक्षा करनी चाहिए। पानी छानने का छन्ना भी धर्मोपकरण में है। बैठका, मुंहपत्ती आदि निवृत्तिमार्ग के धर्मोपकरण हैं और छन्ना गलना प्रवृत्तिमार्ग का धर्मोपकरण है। प्रवृत्तिमार्ग भी धर्म के अन्तर्गत है। प्रवृत्तिमार्ग जीव के लिए स्वाभाविक है और उसमें भी धर्म हो सकता है। कहा भी है - वस्त्रपूतं पिबेज्जलम् । अर्थात्-वस्त्र से छानकर जल पीना चाहिए। मतलब यह है कि जल में जीव होने की बात भगवान के परिपूर्ण ज्ञान को पुष्ट करने के साथ दया को भी पुष्ट करती है। यहां यह कहा जा सकता है कि जब इस जल में जीव नहीं मानते थे या नहीं जानते थे तब की बात दूसरी है, लेकिन जीवों को जान बूझकर जल पियेंगे तो बड़ा पाप होगा। अगर यह विचार ठीक नहीं। यह तो ईसाइयों की सी बात हुई कि गाय में आत्मा नहीं है, यह जानकर हम गाय खाते हैं। गाय में आत्मा मानकर नहीं खाते। जैन धर्म ऐसा झूठा आश्वासन नहीं देता कि हम जल पीते हैं, इसलिए जल में जीव ही न मानें। जल में जीव है, फिर भी जल पीना नहीं छोड़ा जा सकता। यह बात दूसरी है, लेकिन जल का उपकार तो मानना ही चाहिए। कर्ज लेना अच्छा नहीं है, फिर भी आवश्यकता होने पर कर्ज लेना ही पड़ता है परन्तु कर्ज को कर्ज तो मानना ही चाहिए। जिस प्रकार किसी सेठ की एक दुकान से लिया हुआ कर्ज उसकी दूकान पर ७८ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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