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________________ भगवान् कहते हैं - गौतम! यह एक भंग की बात हुई। इसी प्रकार सत्ताईस भंग हैं। कोई समय ऐसा होता है कि नरक के सभी जीव क्रोधी ही क्रोधी होते हैं, तो कभी ऐसा भी समय होता है जब क्रोधी भी बहुत होते हैं और मानी भी बहुत होते हैं, कभी क्रोधी बहुत और मानी एक ही होता है। इसी प्रकार क्रोध और मान, क्रोध और माया तथा क्रोध और लोभ के भंग हैं। यह दो-संयोगी भंग हुए। इन दो-संयोगी भंगों की संख्या छ: है और एक अकेले क्रोध का भंग मिलाने से सात भंग होते हैं दो संयोगी भंगो के समान तीन-संयोगी भंग भी हैं। जैसे-क्रोधी बहुत, मानी बहुत, मायी एक। क्रोधी बहुत, मानी एक, और मायी बहुत । क्रोधी बहुत, मानी बहुत, मायी एक । क्रोधी बहुत, मानी एक, लोभी एक । क्रोधी बहुत, मानी एक, लोभी बहुत। इस प्रकार तीन-संयोगी भंग बारह हैं। तत्पश्चात् चार-संयोगी भंग आते हैं। जैसे-क्रोधी बहुत, मानी एक, मायी एक और लोभी एक। क्रोधी बहुत, मानी एक, मायी एक और लोभी बहुत। इस प्रकार के भंग आठ हैं। ये सब मिलकर सत्ताईस भंग होते हैं। गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं कि-भगवन्! दस हजार वर्ष से एक समय अधिक स्थिति वाले का स्थिति-स्थान अलग है। ऐसी अवस्था में उन जीवों के यही भंग होंगे या कम-ज्यादा? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् फरमाते हैं-हे गौतम ! जघन्य स्थिति से एक समय अधिक स्थिति वाले जीव के विषय में सत्ताईस भंगों के बदले अस्सी भंग होते हैं। जघन्य स्थिति वाले जीव का कभी विरह नहीं होता अर्थात् ऐसा कभी नहीं होता कि कोई न कोई जीव जघन्य स्थिति वाला नरक में न हो। परन्तु एक समय से लेकर संख्यात समय अधिक तक की स्थिति वाले जीवों का कदाचित् विरह भी हो जाता है। किसी समय ऐसा एक ही जीव पाया जाता है और कभी असंख्य पाये जाते हैं। कभी जीव क्रोधी भी हो सकते हैं, मानी भी हो सकते हैं, मायी भी हो सकते हैं और लोभी भी हो सकते हैं। यह चार भंग हुए। इसी प्रकार क्रोधी बहुत, मानी बहुत, मायी बहुत और लोभी बहुत यह चार भंग हैं। इसी तरह क्रोधी और मानी, क्रोधी और मायी, क्रोधी और लोभी, मानी और मायी, मानी और लोभी, तथा मायी और लोभी, इन दो संयोगी के प्रत्येक के चार-चार भंग के हिसाब से चौबीस भंग हुए। इसी प्रकार जीव संयोगी के बत्तीस और चार संयोगी के सोलह भंग हैं। वे सब मिलकर अस्सी भंग हुए। मतलब यह है कि जघन्य स्थिति से एक समय अधिक स्थिति वाले जीवों का कभी-कभी विरह भी हो जाता है, इसलिए - भगवती सूत्र व्याख्यान ४३
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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