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________________ आग में पड़कर अपना जीवन नष्ट करता हो तो उन्हें कोई चिन्ता नहीं। वे इस ओर ध्यान नहीं देते, बल्कि विषयभोग के साधन जुटा कर विषय-भोग सुलभ कर देते हैं। इस प्रकार धर्म का असली स्वरूप तो भूल गये, और धर्म के नाम से अधर्म का सेवन करके भोगविलास बढ़ाया और अब कहते हैं-धर्म और ईश्वर का बहिष्कार करो। धर्म भोगविलास बढ़ाने के लिए है या घटाने के लिए? मां ने आपकी रक्षा धर्म से की है या अधर्म से? अगर माता में धर्मभाव न होता, दया न होती तो वह आपको उसी प्रकार नष्ट कर देती जैसे नागिन • अपने अंडे और कुत्ती अपने बच्चों को खा जाती है। अगर ऐसा होता तो आज आपका कहां पता चलता? जिस दिन संसार से धर्म उठ जायगा, उसी दिन प्रलय मच जायगी, त्राहि-त्राहि की पुकार कानों को सुनाई देगी और संसार नरक बन जायगा। जिस दिन माता के दिल में दया-धर्म न होगा, उस दिन शिशुओं की क्या अवस्था होगी? इतिहास से प्रकट है कि बड़े-बड़े राजघरानों में अपनी कल्पित प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए, धन बचाने की कुत्सित कामना से या समान संबंधी न मिलने से, झूठे बड़प्पन के प्रलोभन से लड़कियों को जहर दे दिया जाता था। धर्म के अभाव में ऐसी घटनाएं क्या साधारण नहीं हो जाएगी, यह कौन कह सकता है ? मेरा विश्वास है कि आज लोग चाहे धर्म की महिमा भले ही न समझें, मगर जिस दिन धर्म न होगा, उस दिन सारा संसार उसी प्रकार तड़फड़ाएगा, जिस प्रकार भाड़ में पड़े हुए चने तड़फड़ाते हैं। धर्म के विषय में यह कहकर कि मैं धर्म के नाम पर होने वाले झगड़ों और अत्याचारों का समर्थन नहीं करता, मैं शुद्ध धर्म की बात कहता हूं, धर्म के नाम पर होने वाला अन्याय और अत्याचार अवश्य निंद्य है; मगर ज्ञानियों ने ऐसे झगड़े मिटाने के लिए ही उपदेश दिया है। वे कहते हैं-हाथी का एक-एक अंग छूकर लड़ने वाले आंख खोलकर देख लें और आपस में विचार करें, एक दूसरे की बात की सचाई का अनुभव करें, तो झगड़ा खत्म हो जायगा। ज्ञानियों ने लड़ाई मिटाने का जो उपाय बताया है, वह अच्छा है या हाथी का पांव अथवा सूंड पकड़कर, एक-एक अंग को पूरा हाथी सिद्ध करने की चेष्टा में लड़ मरना अच्छा है? अब यह प्रश्न होता है कि जैन धर्म एक ही वस्तु को एक रूप न कहकर अनेक रूप कहता है, सो यह कैसे ठीक हो सकता है? कभी हाथी को खंभे जैसा और कभी रस्सी जैसा कहना किस प्रकार उचित कहा जा सकता है? जिस वाद में वस्तु क्षण-क्षण में बदलती है, उसे अनेकान्तवाद न - भगवती सूत्र व्याख्यान ३७
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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