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________________ नित्यं च समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु ।।७।। __ मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी। विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि।।10।। अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्वज्ञानार्थदर्शनम्। एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोऽन्यथा।।11।। -गीता अध्याय, 13, वां आशय यह है कि जिसके प्राप्त होने पर अभिमान गल जाय वह ज्ञान है और जिसके प्राप्त होने से अभिमान में वृद्धि हो वह अज्ञान है। जिसके सेवन से रोग निवृत्त हो जाय वह औषध है और जिसके सेवन से रोग बढ़े, वह दवाई नहीं-कुपथ्य है। इसी प्रकार ज्ञान की कसौटी अभिमान का क्षीण होना है। चाहे पोथी पढ़ी हो, या न पढ़ी हो, लेकिन जिसमें अभिमान नहीं है वह ज्ञानी है और पढ़ने पर भी जिस पर अभिमान का भूत सवार है वह अज्ञानी है। इसी प्रकार दंभ का त्याग, अहिंसा, क्षमा, आर्जव (सरलता), आचार्य की उपासना, पवित्रता, स्थिरता, आत्मनिग्रह, इन्द्रियों के भोगोपभोग के प्रति विरक्ति, अहमत्व न रहना, जन्म-मरण व जरा रूप रोगों को दुःखरूप समझना और उनके दोषों को देखना, आसक्ति न होना, पुत्र कलत्र-गृह आदि में गृद्धि न होना, इष्ट और अनिष्ट विषयों में सदैव समभाव होना, ईश्वर में अनन्यभाव से अव्यभिचारिणी भक्ति होना, एकान्त वास करना, जनता के संसर्ग में अरुचि होना, नित्य अध्यात्मज्ञान होना, तत्वज्ञान प्राप्त करना, यह सब ज्ञान के लक्षण हैं। इस से विपरीत लक्षण होना अज्ञान है। ऊंचे चढ़ने पर बड़ी चीज भी छोटी दिखने लगती है। यद्यपि वह वस्तु इतनी छोटी नहीं है- पहले की अपेक्षा तो वह तनिक भी छोटी नहीं हुई है लेकिन ऊपर चढ़ा होने के कारण दृष्टि में विकार आ जाता है और बड़ी चीज भी छोटी दिखाई देती है। कई लोग कहते हैं हम प्रत्यक्ष देखे बिना कोई बात नहीं मानते, लेकिन प्रत्यक्ष देखी जाने वाली बात के विपरीत भी मानना पड़ता है। ऊपर चढ़ा हुआ आदमी प्रत्यक्ष से देखकर जिस चीज को छोटी बतलाता है, उसी के विषय में, उसी का हृदय कहता है-वास्तव में वह छोटी नहीं है, वह तो ज्यों की त्यों बड़ी है। लेकिन ऊपर चढ़ने के कारण दृष्टि में विकार आ गया है। इसी कारण बड़ी वस्तु छोटी नजर आती है। भला सोचिए, ऐसे समय में प्रत्यक्ष की बात मानना उचित है या बुद्धि की? क्या इस समय बुद्धि को ठगना उचित होगा? यही बात एक उदाहरण से स्पष्ट की जाती है। २० श्री जवाहर किरणावली - 0999993
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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