________________
हैं? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया-हे गौतम! आग लगाने में भी तीन, चार या पांच क्रियाएं लगती हैं। जब घास में आग लगाने का संकल्प किया, तब तीन क्रियाएं लगीं। घास इकट्ठा करने में प्राणियों को कष्ट हुआ, इसलिए उस समय चार क्रियाएं हुई। फिर घास में जब आग लगा दी, जिससे अनेक प्राणी मरे, तब पांच क्रियाएं हुई।
इन प्रश्नोतरों में देखना यह है कि कहां तो मृग मारने की क्रिया और कहां आग लगाने की क्रिया; दोनों में बहुत अन्तर नजर आता है। फिर दोनों क्रियाएं बराबर कैसे हुई? इसके अतिरिक्त जीवन के लिए आग आवश्यक है। कर्मभूमि का पहला चिह्न आग ही है। कई लोग अग्नि को सहायक मान कर उसकी पूजा भी करते हैं। सांसारिक जीवन में आरंभ बिना निभ नहीं सकता। इसलिए प्रश्न होता है कि क्या मृग मारने वाला और अग्नि का आरंभ करने वाला, क्रिया के लिहाज से बराबर है?
इस प्रश्न का उत्तर यह है कि प्रत्येक क्रिया हल्की भी होती है और भारी भी होती है। आग लगाने वाले को आग की क्रिया लगती है और मृग मारने वाले को मृग मारने की क्रिया लगती है। उदाहरण के लिए एक आदमी पर पांच कौड़ी का कर्ज है और दूसरे आदमी पर पांच रुपये का कर्ज है। यहां कर्ज दोनों पर है और पांच की संख्या भी समान है, तथापि एक का कर्ज हल्का और दूसरे का भारी है। दोनों में यह अन्तर है।
अब यह देखना चाहिए कि अग्नि में भी जीव होते हैं। उन जीवों की क्रिया लगती है या नहीं? शास्त्र कहता है-आग में भी जीव है। महाभारत भी पांच प्रकार के स्थावर योनि वाले जीवों को स्वीकार करता है। कई लोगों का कथन है कि वृक्ष में जीव नहीं है, मगर यह कथन ठीक नहीं है। उद्भिज जीव, जो जमीन फोड़ कर निकलते हैं, वह झाड़ हैं। जगदीशचन्द्र बसु ने भी झाड़ में जीव सिद्ध किये हैं।
सार यह है कि मृग मारने में त्रस जीव की हत्या की क्रिया लगती और आग जलाने में स्थावर जीवों के प्राणनाश की क्रिया लगती है। स्थावर योनि के भी जीव होते हैं। ऐसा न होता तो संयमी को आग जलाने से न रोका जाता। मगर संयमी पुरुष के लिए आग जलाने का निषेध किया गया है। मनु ने पांच सूना-कर्म बतलाये हैं। उनमें एक चूल्हा, दूसरी चक्की, तीसरा ऊखला, चौथा परिंडा और पांचवां झाडू है। गृहस्थ को यह पांच कर्म लगते ही हैं।
- भगवती सूत्र व्याख्यान २७५