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________________ विदुर्गे वा, मृगवृत्तिकः मृगसंकल्पः मृगप्रणिधानो वा, मृगवधाय गत्वा एते मृगाः' इति कृत्वा अन्यतरस्य वा मृगस्य वधाय कूटपाशं उद्ददाति; ततो भगवन्! स पुरुषः कतिक्रियः प्रज्ञप्तः ? उत्तर- गौतम! यावत् च स पुरुषः कच्छे वा, यावत् कूटपाशं उद्ददाति, तावत् च स पुरुषः स्यात् त्रिक्रियः स्यात् चतुष्क्रियः स्यात् पञ्चक्रियः । प्रश्न - तत् केनार्थेन भगवन् ! एवमुच्यते - स्यात् त्रिक्रियः स्यात् चतुष्क्रियः, स्यात् पंचक्रियः? उत्तर - गौतम! यो भव्य उद्द्रवणतया, नो बन्धनतया, नो मारणतया तावच्च स पुरुषः कायिक्या, आधिकरणिक्या, प्राद्वेषिक्या, तिसृभिः क्रियाभिः स्पृष्टः । यो भव्य उद्द्रवण तयाऽपि बन्धनतयाऽपि नो मारणतया तावच्च स पुरुषः कायिक्या, आधिकरणिक्या, प्राद्वेषिक्या, पारितापनिक्या, चतुसृभिः क्रियाभिः स्पृष्टः। यो भव्य उद्द्रवणतयाऽपि बन्धनतयऽपि मारणतयाऽपि तावच्च स पुरुषः कायिक्या आधिकरणिक्या, प्राद्वेषिक्या, यावत् - प्राणातिपात क्रियया पञ्चभिः क्रियाभिः स्पृष्टः । तत् तेनार्थेन यावत् पञ्चक्रियः । शब्दार्थ प्रश्न- भगवन् ! हिरनों से आजीविका चलाने वाला हिरनों का शिकारी और हिरनों के शिकार में तल्लीन कोई पुरुष हिरन को मारने के लिए कच्छ (नदी के पानी से घिरे हुए झाड़ियों वाले स्थान में) दह में, जलाशय में, घास आदि के समूह में, वलय (गोलाकर नदी वगैरह के पानी से आड़े - टेढ़े स्थान) में, अंधकार वाले प्रदेश में, गहन में (वृक्ष, बेल आदि के समुदाय में) पर्वत के एक भागवर्ती वन में, पर्वत में, डूंगर वाले प्रदेश में, वन में, और बहुत वृक्षों वाले वन में जाकर 'ये मृग है' ऐसा सोचकर किसी मृग को मारने के लिए कूटपाश रचे अर्थात् गड्ढा बनावे या जाल फैलावे; तो हे भगवन्! वह पुरुष कितनी क्रियाओं वाला कहा गया है? उत्तर - हे गौतम! वह पुरुष कच्छ में यावत्-जाल फैलावे तो कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और कदाचित् पांच क्रिया वाला कहलाता है। प्रश्न-भगवन्! क्या कारण है कि वह पुरुष कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और कदाचित् पांच क्रिया वाला कहलाता है? उत्तर - हे गौतम! जब तक वह पुरुष जाल को धारण करता है, और मृगों को बांधता नहीं है तथा मृगों को मारता नहीं है, तब तक वह पुरुष २६६ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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