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________________ टीकाकार कहते हैं कि कई बार हजारों आघात होने पर भी मनुष्य बच जाता है, अर्थात् जो स्थान मृत्यु का है, वहां तो जीवित रह जाता है और जो जीवन का स्थान है-जहां मरने का डर नहीं है वहां मनुष्य मर जाता है। इस कथन पर आशंका की जा सकती है कि फिर ऐसा क्यों समझा जाय कि मृत्यु का कारण यह है? और यह नहीं है? इस संबंध में शास्त्र कहता है कि आयु दो प्रकार की होती है:- (1) निरुपक्रम आयु और (2) सोपक्रम आयु । जो आयु सैकड़ों कारणों से भी अकाल में नष्ट नहीं होती, वह निरुपक्रम आयु कहलाती है। और सोपक्रम आयु के नाश के सात कारण ऊपर दिखलाये गये हैं। उन कारणों से सोपक्रम आयु का बीच में ही नाश हो जाता है। निरुपक्रम आयु किसे प्राप्त होता है? इस बात का उल्लेख भी शास्त्र में किया गया है। त्रेसठ श्लाका-पुरुष, तद्भवमोक्ष गामी (उसी भव से मोक्ष पाने वाले), देव और नारक जीव निरुपक्रम आयुष्य वाले होते हैं। साधारण मनुष्यों में निरुपक्रम आयुष्य होता भी है और नहीं भी होता। अतएव सावधानी रखने की आवश्यकता है। जहां सत्य और झूठ-दोनों चलते हों, वही सावधानी रखने की आवश्यकता है। जो सत्य और असत्य में सावधान रहते हैं, वही असत्य से बच सकते हैं। हमारा आयुष्य सोपक्रम है या निरुपक्रम, यह निश्चित नहीं है, इसलिए सावधानी रखने की आवश्यकता है। आप कहेंगे, यह तो भय की बात हुई और भय बुरा है। लेकिन भय से घबराना नहीं चाहिए, भय को जीतना चाहिए। चोर लूट लेंगे, इस भय से घबरा कर मरने से काम नहीं चल सकता है। अतएव भयभीत न होकर सावधान रहना चाहिए। शंका करने वाले कह सकते हैं-आयु के विनाश की बात तात्त्विक दृष्टि से शंकास्पद है, कल्पना कीजिए, एक मनुष्य सौ वर्ष की आयु लेकर आया है, परन्तु आयुनाश का कोई कारण उपस्थित होने से वह बीच में ही मर गया। इस प्रकार उस मनुष्य ने जो आयु कर्म उपार्जित किया था, उसे नहीं भोगा और जो उपार्जित नहीं किया था उसे भोगना पड़ा। अतः कृत का नाश और अकृत का प्रसंग हुआ। ऐसा मानने से तो मोक्ष तत्त्व भी गड़बड़ में पड़ जायगा। इसका उत्तर यह है कि जिसे भस्मक व्याधि हो जाती है, वह बहुत दिनों का भोजन थोड़े ही दिनों में नष्ट कर देता है अर्थात् खा लेता है। इसी प्रकार यह भी देखा जाता है कि कोई वृक्ष अकाल में ही फल देने लगता है। २६० श्री जवाहर किरणावली
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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