SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का बालक भी तलवार लेकर श्मशान में जा सकता है, परन्तु भारत का साठ वर्ष का बूढा भी वहां जाते डरता है। ऐसी दशा में आयुष्य कम होना स्वाभाविक है। जहां पग-पग पर भय भरा है, वहां के लोगों का आयुष्य कम क्यों नहीं होगा? बचपन के संस्कार आयु भर रहते हैं। भय के संस्कारों से धर्म–अर्थ का नाश ही होता है। इसलिए भगवान् ने 'सव्वेसु दाणेसु अभयप्पयाणं' अर्थात् सब दानों में अभयदान प्रधान है, ऐसा कहा है। भगवान के विशेषणों में भी 'अभयदयाणं विशेषण लगाया गया है। भगवान् ने प्राणीमात्र को निर्भय बनाने का उपदेश दिया है। अगर तुम सच्चे दयावान् हो, तो न किसी को भय दो, न किसी से भय खाओ। जो जीव जितनी आयु लाया है, वह उतनी ही भोगता है, यह कथन एकपक्षीय है। अलबत्ता देवता, तीर्थकर और नारकी जीवों के संबंध में यह कथन सत्य है, मगर यहां उनकी बात नहीं है। देवों और तीर्थंकर की बात कहकर अपने कर्तव्य को भूलना ठीक नहीं है। हमें अपने संबंध में भी विचारना चाहिए और अपने कर्तव्य का पालन ठीक तरह करना चाहिए। लोग दूसरे प्राणियों को और अपने बच्चों को भयभीत करते हैं, लेकिन भयभीत करना भी हिंसा है। अतएव किसी को भयभीत नहीं करना चाहिए। हां, सच्चा उपदेश देकर नरक का वास्तविक भय बतलाना अनुचित नहीं है, पाप का भय बतलाना पाप नहीं है, क्योंकि नरक का या पाप का भय दिखलाने का अर्थ है-उस भय से मुक्त करने के लिए किसी को सावधान करना। अनावश्यक भय दिखलाकर हृदय में भीरुता उत्पन्न करना पाप है। आयुभेद का दूसरा कारण निमित्त है। राग, द्वेष, भय आदि न होने पर भी निमित्त से जीव की मृत्यु हो जाती है। किसी के मर्मस्थान पर तलवार, लाठी, भाला या बंदूक की गोली लगने पर वह मर जाता है। यह आयुभेद का दूसरा कारण है। - शस्त्र मारने के लिए ही बने हैं। अगर वह हिंसा न कर सकें तो उन्हें 'शस्त्र' नाम ही न दिया जाय। '32 हिंसायाम्' धातु से 'शस्त्र' शब्द बना है। इसीलिए यह हिंसा के हेतु हैं। बड़े-बड़े युद्धों में लाखों मनुष्यों की मृत्यु होती देखी जाती है। अगर युद्ध न होता तो क्या एकदम इतने अधिक मनुष्य मरते? नहीं। अतएव आयुभेद का एक कारण निमित्त भी है। आयुभेद का तीसरा कारण आहार है। बहुत से लोग आहार के अभाव में मर जाते हैं और बहुत से अधिक आहार खा जाने से भी मर जाते २५८ श्री जवाहर किरणावली । 3000seemese 10000 888888 5888888888888
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy