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________________ बाल अज्ञानी को कहते हैं। जैसा जाना वैसा ही आचरण करने वाला पंडित कहलाता है और जो जानता हुआ भी आचरण कम करता है, उसे बाल पंडित कहते हैं, अर्थात् अपने ज्ञान को जो आंशिक रूप में, क्रिया में परिणत करता है, वह बाल पंडित कहलाता है । गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया - हे गौतम! बाल जीव नरक में भी जाता है, तिर्यंच भी होता है, मनुष्य भी होता है और देव भी होता है। कोई बाल जीव महा आरम्भी होता है, कोई अल्प आरम्भी होता है। कोई महाकषायी होता है, कोई अल्प कषायी होता है। अतएव उनकी गति अलग-अलग होती है। गौतम स्वामी ने बाल जीवके विषय में जैसा प्रश्न किया था, वैसा ही वे पंडित जीव के विषय में प्रश्न करते हैं । भगवान् ने उत्तर दिया हे गौतम! बाल जीव अगर कष्ट सहन करता है तो अज्ञान से कष्ट सहन करता है और पंडित जीव ज्ञान पूर्वक कष्ट सहन करता है। पंडित जीव ज्ञान से क्षमा करता है। अतएव वह उसी भव से मोक्ष हो जाता है। अगर उसके कर्म शेष रह जाते हैं, तो वह स्वर्ग जाता है। वहां की स्थिति पूर्ण होने पर फिर मनुष्य होता है और मोक्ष चला जाता है। इसके पश्चात गौतम स्वामी बाल पंडित के विषय में प्रश्न करते हैं। जितनी भी अच्छी क्रिया बनती है वह पंडितपन में है और जो नहीं बनती वह बालपन में है । प्रायः सर्वत्र उत्तम, मध्यम और जघन्य, यह तीन श्रेणियां होती हैं। जहां तक संभव हो उत्तम वृत्ति धारण करनी चाहिए। उत्तम वृत्ति न बने और मध्यमवृत्ति बने तो भी कल्याणकारी है अर्थात् बड़े-बड़े पापों को त्याग करने में भी कल्याण ही है। इसे समझने के लिए एक उदाहरण उपयोगी है:एक राजा और उसके प्रधान के पुत्र नहीं था । राजा सोचने लगा- मेरे पश्चात् राज्य का मालिक कौन होगा? प्रधान भी इसी प्रकार विचारता था । राजा और प्रधान दोनों एक सिद्ध पुरुष की सेवा करने लगे। सिद्ध ने एक दिन उनसे पूछा - 'तुम पुत्र द्वारा अपना नाम ही करना चाहते हो या जगत् का कल्याण करना चाहते हो ? राजा ने उत्तर दिया- 'केवल नाम के लिए ही नहीं, किन्तु प्रजा के लिए भी पुत्र की इच्छा करता हूं। सिद्ध ने कहा- 'तुम्हारी इच्छा अच्छी है, मगर ऐसा पुत्र तुम्हारे घर नहीं जन्मेगा । ऐसा पुत्र समाज में मिलेगा ।' तब राजा ने पूछा- 'कहां मिलेगा ?' सिद्ध ने कहा- 'मंगतों - भिखारियों की फौज में ऐसा पुत्र मिलेगा।' राजा ने आश्चर्य के साथ पूछा- ऐसा पुत्र और मंगतों की फौज में मिलेगा? २५२ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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