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________________ का उपकरण रखने की भी आवश्यकता नहीं रहेगी। जिन जीवों को अपने किये कर्म के अनुसार मरना है, वे मर जाएंगे? और जिन्हें जीना है, वे जीवित रहेंगे। फिर जीवरक्षा की सावधानी का प्रयोजन ही क्या है? अगर यही निश्चय ठीक है तो फिर क्षत्रिय लोग तलवार का और साधु ओघे का भार क्यों उठावें? न कोई किसी को मार सकता है, न जिला, जीवित रख सकता है, फिर इस खटपट में पड़ने की क्या जरूरत है? क्षत्रिय लोग रक्षा के लिए या दूसरे को मारने के लिए तलवार रखते हैं, परन्तु साधु जन केवल जीवरक्षा के ही लिए ओघा रखते हैं। तात्पर्य यह है कि गर्भ के बालक को उसके पुण्य-पाप पर छोड़ देना और उसकी रक्षा के लिए उचित सावधानी न रखना घोर निर्दयता का कार्य है। सच्ची समझदार माता एक क्षण के लिए भी ऐसा क्रूर विचार नहीं कर सकती खेद है कि कुछ लोग आज गर्भ की रक्षा को भी पाप कहने की धृष्टता करते हैं। भगवान् ने गौतम स्वामी को बतलाया है कि गर्भ का बालक, माता के सुख से सुखी और दुःख से दुखी होता है। बालक का माता से जितना संबंध है उतना संबंध किसी दूसरे से नहीं है। इसीलिए माता को 'देवगुरु संकासा' कहा गया है। अब गौतम स्वामी भगवान् से बालक के जन्म-समय की हकीकत पूछते हैं कि बालक कैसे जन्मता है? किसी-किसी बालक का प्रसव सिर की तरफ से होता है और किसी का पांव की तरफ से होता है। कोई तो पांव और मस्तक से सम होकर जन्मता है और कोई तिर्छा होकर। जब बालक तिर्छा होकर जन्मता है, तब बालक को और माता को कैसी वेदना होती है, यह या तो वही जान सकती हैं, या ज्ञानी जान सकते हैं। ऐसे समय के लिए कुछ उपाय हैं। उपाय करने से बालक अगर सीधा हो गया तब तो ठीक है, नहीं तो बालक और उसकी माता का घात हो जाता है। कई बार माता की रक्षा के लिए गर्भ का बालक काट-काट कर निकाला जाता है। यह जन्म की बात हुई। अब जन्म के बाद की बात बतलाई जाती है। भगवान् फर्माते हैं हे गौतम! गर्भ से निकले हुए बालक ने अगर अच्छे वर्ण के काम (पूर्व भव में) नहीं किये हैं तो उसकी स्थिति अच्छी नहीं होती। कर्म दो प्रकार के हैं-श्लाघ्य और अश्लाघ्य । कर्मों को न मानना भी मूर्खता है और कर्मों का विपरिणाम न मानना भी मूर्खता है। कर्मवाद के साथ - भगवती सूत्र व्याख्यान २४३
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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