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________________ इस प्रश्नोत्तर से यह निष्कर्ष निकलता है कि गर्भ के बालक को स्वर्ग भेजना या नरक भेजना बहुत कुछ माता के अधीन है। माता अपने बालक को जहां चाहे वहीं भेजने के योग्य बना सकती है। जिस माता के गर्भ का जीव स्वर्ग जाता है, वह माता ढोंग की पूजा करने वाली नहीं होती। आज गर्भवती माताएं अधिकांश ढोंग की पूजा करती हैं, इसलिए गर्भस्थ बालक पर भी वैसे ही संस्कार पड़ते हैं। तथारूप श्रमण-माहन के वचन आर्य हैं। उनके वचनों में जरा भी विषमता नहीं है। जिस वचन में जरा भी विषमता न हो, वही आर्य वचन कहलाता है। श्रमण-माहन के मुख से निकले अनेक आर्य वचनों का तो कहना ही क्या है? अगर एक वचन भी गर्भ का बालक सुनकर धारण कर लेता है, तो भी वह स्वर्ग चला जाता है। श्रावक को ब्राह्मण या माहन क्यों कहा है? इसका कारण यह है कि ब्राह्मणत्व का आधार कर्म है। कर्म से ही ब्राह्मण कहलाता है। उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है: कम्मणा बम्हणो होई, कम्मुणा होई खत्तिओ। कम्मुणा वेसिओ होई, कम्मुणा हवइ सुद्दाओ।। अर्थात् अमुक प्रकार के कर्म से ही ब्राह्मण होता है, अमुक प्रकार के कर्म से क्षत्रिय कहलाता है, अमुक प्रकार के कर्म से वैश्य कहलाता है और अमुक कर्मों के कारण शूद्र कहलाता है। मनुस्मृति में भी यही बात कही गई है। श्रावक स्थूल प्राणातिपात नहीं करता है। और 'जीव को मत मारो वह सिद्धान्त प्रत्येक स्थान पर प्रकट करता है। यानि जो स्वयं हिंसा से निवत्त होकर दूसरों को भी निवृत्त होने का उपदेश देता है, वह माहन-श्रावक या ब्राह्मण कहलाता है। इस प्रकार माहन का अर्थ ब्राह्मण है, परन्तु वही ब्राह्मण है जो ब्रह्मचर्य का पालन करता हो। स्वस्त्री-संतोषी और परस्त्री-त्यागी भी देशब्रह्मचारी कहलाता है। 'एक नारी सदा ब्रह्मचारी यह कहावत लोक में प्रसिद्ध ही है। ऐसे श्रमण-माहन के एक भी आर्य, धर्म-वचन को धारण करने वाला गर्भ का बालक स्वर्ग जा सकता है। वचन और प्रवचन में अन्तर है। 'प्रकृष्टं वचनं प्रवचनम्' अर्थात उत्कृष्ट बोलना प्रवचन कहलाता है। अथवा 'प्रकृष्टस्य वचनं प्रवचनम् अर्थात् उत्कृष्ट पुरुष का वचन प्रवचन कहलाता है। इसके विपरीत साधारण बोल-चाल को वचन कहते हैं। न्यायाधीश (जज) घर में भी बोलता है और - भगवती सूत्र व्याख्यान २३३
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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