SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के अनन्त नाम हैं। उनमें से ओंकार में किसी का मतभेद नहीं है। अतः भेदभाव छोड़कर सभी लोग समान भाव से 'ऊँ का जाप कर सकते हैं। भक्ति से मन स्थिर होगा तो जन्म-मरण बंद हो जायगा। मन की एकाग्रता का प्रभाव ही आजकल 'मेस्मेरेज्म' विद्या के नाम से प्रसिद्ध है। मन की शक्ति से लोग जहाजों तक उलट देने में सफल हो गये हैं। आजकल इस विद्या के प्रभाव से बच्चों को बेहाश करके अधर उठा दिया जाता है। यह सब मानसिक शक्ति ही का प्रभाव है। जो मानसिक शक्ति इतनी प्रबल है, उसे व्यर्थ मत गवांओ। वृथा बुरी-भली बातें सोचने से क्या लाभ है? होगा वही जो होना है। अगर थोड़े दिन भी एकाग्रभाव से ऊँ का ध्यान करोगे तो तुम्हारे हृदय में एक विचित्र शक्ति उत्पन्न हो जायगी। अपनी जिह्वा और अपने नेत्रों को यदि समुचित रूप से अपने अधीन रखने की आदत डालो तो तुम्हारा चित्त शीघ्र ही वश में हो जायगा। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि मौन रखने से मन की शक्ति बढ़ती है। मैंने मौन के गुणों का स्वयं अनुभव किया है। मौन सर्वश्रेष्ठ है, मगर जगत के व्यवहार बोले बगैर नहीं चलते इसलिए अल्पभाषी होकर अपनी चित्तवृत्ति पर ध्यान रक्खो। देखते रहो, वह क्या करता है? और कहां जाता है? चित्त की अविग्रहगति रहनी चाहिए। अर्थात् उसकी गति टेढ़ी नहीं होनी चाहिए। मन चले या बैठा रहे मगर सीधा रहे। भूत की तरह हमें खाने वाला न बने। सदा ईश्वर-भक्ति में तल्लीन रहे, बुरे विचारों में न पड़े, यही चित्त की अविग्रह गति है। मन से अच्छे कार्य कर लेने चाहिएं। जो कार्य हमें दूसरों से छिपाने पड़ें, उन्हें बुरा काम समझना चाहिए। जो कार्य अच्छे समझकर करोगे, उनमें चाहे आरंभ भी हो, मगर वह प्रायः अल्पारंभ ही होगा। जितने कार्य छिपाये जाते हैं, वे सब महारंभ पूर्ण समझने चाहिएं। विवाह के समय लोग अपने संबंधियों को आमंत्रित करते हैं और धूमधाम करते हैं, किन्तु जब व्यभिचार के लिए जाते हैं तब लुक-छिपकर चोरों की तरह जाना पड़ता है। बस, यही अल्पारंभ और महारंभ का भेद है। यद्यपि आरंभ दोनों में है, मगर एक में कम और दूसरे में अधिक है। इसीलिए कहता हूं-चुपके-चुपके किये जाने वाले कार्य छोड़ दो तो बहुत-से पाप अपने आप दूर हो जाएंगे। उस समय मन की विग्रहगति मिटकर सीधी-अविग्रहगति हो जायगी। २०६ श्री जवाहर किरणावली ।
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy