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________________ शास्त्रकारों ने जीव की विग्रह और अविग्रह अर्थात टेढ़ी और सीधी-इस तरह दो प्रकार की गति बतलाई है। यद्यपि इस वर्णन में अनेक बड़े-बड़े रहस्य छिपे हैं, किन्तु बहुत सूक्ष्म बातें नं बतलाकर कुछ स्थूल बातें ही आपको बतलाता हूं। यह तो सभी जानते हैं कि चित्त की गतियां टेढ़ी और सीधी-दो प्रकार की हैं। अपने मन की किस समय, कौनसी गति होती है, यह समझ सकना भी अपने लिए कठिन कार्य है तो दूसरे के मन की बात तो समझी ही कैसे जा सकती है? कई लोग चित्त की चंचलता को सर्वथा ही रोक देने की चेष्टा करते हैं और उसी में कल्याण समझते हैं, किन्तु ऐसा होना दुःसाध्य है। ज्यों-ज्यों आप चित्त को रोकने का प्रयत्न करेंगे, वह अधिकाधिक चंचल होता जायगा। अतएव उसे सर्वथा रोकने का विचार छोड़कर उसकी चाल चौकसी करना और उसे टेढ़ा-मेढ़ा जाने से रोकना ही अधिक व्यवहार्य है। किसी अच्छे प्रकार के चिन्तन में फंसाये रहने से ही मन टेढ़ी चाल से बचता है। खाली रहने पर वह बड़ उत्पात मचाता है। इस संबंध में एक उदाहरण लीजिए: एक मनुष्य किसी सिद्ध पुरुष की सेवा करता था। सिद्ध ने उसकी मनोकामना पूछी। सेवक ने कहा-महाराज! मैं खेती कर-कर के मरता-पचता हूं, फिर भी पेट नहीं भर पाता। इससे विपरीत जब मैं नगर में जाकर नागरिक लोगों को देखता हूं तो वे लोग अल्प परिश्रम करके भी खूब मजा-मौज लूटते हैं। मैं साल भर में जितना कमाता हूं, उतना वे एक ही दिन में उड़ा देते हैं। उन्हें देखकर मैं भी उन्हीं सरीखा धनी बनना चाहता हूं। इसी इच्छा से आपकी सेवा कर रहा हूं। सिद्ध बाले-ठीक, मैं तुझे एक मंत्र बतलाता हूं। उसका जाप करने से एक भूत तेरे कब्जे में हो जायगा। वह तेरा सब काम किया करेगा और तेरी समस्त इच्छाएं पूरी करता रहेगा। किसान ने मंत्र लिया और उसकी साधना की। साधना से भूत आया। बोला-अब मैं तुम्हारे आधीन हूं। किन्तु एक भी क्षण में बेकार नहीं रहूंगा। अगर बेकार रहा तो तुम्हें खा जाऊंगा। यह मेरा स्वभाव है। किसान ने यह बात स्वीकार कर ली। फिर उसने भूत को काम बतलाना शुरू किया। खेत जोतना, बोना, मकान बनाना, योगोपयोग की सामग्री प्रस्तुत करना, आदि सभी कार्य उसने बात की बात में पूरे कर दिये। यह सब काम पूरे करके भूत ने कहा-अब क्या करना है? काम बताओ, नहीं तो तुम्हें खाता हूं। MAmeesses 888888888 भगवती सूत्र व्याख्यान २०३
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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