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________________ इसके पश्चात् गौतम स्वामी ने नारकियों के निकलने का प्रश्न किया, जिसके उत्तर में भगवान् ने फरमाया - एक की ही तरह अनेक के विषय में भी समझना चाहिए। अब गौतम स्वामी पूछते हैं - प्रभो! नरक में उत्पन्न होने वाला क्या अर्धभाग से अर्धभाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है, अर्धभाग से सर्व भाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है, सर्वभाग से अर्धभाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है या सर्वभाग से सर्व भाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है? भगवान ने उत्तर दिया- गौतम! पहले कहे हुए आठ दंडकों के समान ही यहां भी समझना चाहिए। फर्क केवल इतना है कि उसमें जहां 'देश से देश उत्पन्न होता है। ऐसा कहा है उसके स्थान पर वहां आधे से आधा उत्पन्न होता है ऐसा बोलना चाहिए। आधे से सर्व नहीं, आधे से आधा नहीं। सर्व भाग से आधा भाग हो सकता है और सब से सर्व भाग भी हो सकता है इस प्रकार पूर्वोक्त आठ और यह आठ दंडक मिलकर सब सोलह दंडक होते हैं। पहले एक देश (अवयव) संबंधी प्रश्न किया जा चुका था फिर यहां आधे के विषयमें क्यों प्रश्न किया गया? इसका उत्तर यह है कि देश और आधे में बहुत अन्तर है। मूंग में सैकड़ों देश (अवयव) है। उसका छोटे से छोटा टुकड़ा भी देश ही कहलाएगा, किन्तु बीचों बीच से दो हिस्से होने पर ही आधा भाग कहलाता है। इस प्रकार जीव के दो टुकड़े हों और एक टुकड़ा उत्पन्न हो और दूसरा न हो, यह नहीं हो सकता। यही बतलाने के लिए यह प्रश्नोत्तर किया गया है कि आत्मा के देश या आधा हिस्सा नहीं हो सकता। आत्मा अछेद्य है। गीता में भी कहा है नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो, न शोषयति मारुतः!! अर्थात्-इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकता, आग जला नहीं सकती, पानी भिगो नहीं सकता और हवा सुखा नहीं सकती। इस प्रकार आत्मा के टुकड़े नहीं होते। वह मारने से मर नहीं सकता, काटने से कट नहीं सकती और सुखाने पर भी सूख नहीं सकती। नरक में जायगा तो पूरा जायगा, स्वर्ग में जायगा तो पूरा ही जायगा और मोक्ष में गया तो भी पूरा ही जायगा। __ शास्त्र में नरक की तीव्र से तीव्र वेदना का जो वर्णन किया है, उसमें भी रहस्य छिपा है। उसके वर्णन से यह ज्ञात होता है कि नरक की जिस भीषण अग्नि में जीव सुलगता है, उसमें पड़कर भी जीव का नाश नहीं होता। - भगवती सूत्र व्याख्यान १६७
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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