________________
इस प्रश्नोत्तर में सबसे पहले यह प्रश्न उपस्थित होता है कि नरक के जीव का नरक में उत्पन्न होना कैसे कहा गया है? यह शास्त्रप्रसिद्ध बात हैं कि नारकी जीव मरकर नारकी नहीं होता । मनुष्य और तिर्यंच ही मरकर नरक में उत्पन्न हो सकते हैं। फिर इस प्रश्नोत्तर में यह कथन क्यों किया गया है?
इस प्रश्न का समाधान यह है कि चलमाणे चलिए सिद्धांत के अनुसार जो जीव नरक में उत्पन्न होने वाला है, उसे नरक का जीव ही कहते हैं। क्योंकि वह मनुष्य या तिर्यंच योनि का आयुष्य समाप्त कर चुका है और उसके नरकायु का उदय हो चुका है। नरकायु का उदय होते ही उस जीव को नारकी कहा जा सकता है। अगर ऐसा न माना जाय तो उसे किस गति का जीव कहा जायगा ? मनुष्य या तिर्यंच की आयु समाप्त हो गई है। अतः मनुष्य या तिर्यंच तो कह नहीं सकते। और नरक में नहीं पहुंचने के कारण नारकी भी न कहा जाय तो फिर उसे किस गति में कहा जाय? वह नरक के मार्ग में है, नरकायु का उदय उसके हो चुका है। इसलिए नरक में उत्पन्न न होने पर भी उसे नरक का जीव ही कहना उचित है।
गौतम स्वामी के प्रश्न में बड़ा रहस्य है। संसार में अनेक ऐसी बातें हैं जिनसे अपने तत्त्व की गाड़ी बचाते हुए निकाल ले जाना बड़ी कठिनाई का काम है । गौतम स्वामी के प्रश्न में तत्त्व की गाड़ी का बचाव किया गया है । किसी को टक्कर भी न लगे और अपनी गाड़ी भी निकल जाए, ऐसा करना बड़ी सावधानी का काम है, यही सावधानी इस प्रश्न में रक्खी गई है। गौतम स्वामी ने अपने प्रश्न में अन्यान्य वादियों के वाद को बतलाते हुए भगवान् से प्रश्न किया है कि प्रभो! कोई कुछ मानता है, लेकिन आपका सिद्धांत क्या है, सो कहिए। भगवान् ने उत्तर में फर्माया - हे गौतम! मैं चौथा विकल्प मानता हूं।
शास्त्रकारों ने संसार - प्रचलित असत् वादों से बचाकर सत्य सिद्धांत को प्रतिपादत किया है। उन्हें किसी को धक्का लगना भी अभीष्ट नहीं था और न सत्य सिद्धांत को दबाना ही अभीष्ट था। उन्होंने प्रत्येक बात सीधी-सादी युक्तियों और उपमाओं से सिद्ध करके दिखलाई है। उनकी सादी और बुद्धि - गम्य युक्तियां देखकर उन पर विश्वास करना चाहिए। कदाचित् कोई बात समझ में न आवे तो भी यह विचारना चाहिए कि मेरी समझ में न आने से ही कोई बात मिथ्या नहीं हो सकती । मेरी समझ इतनी परिपूर्ण नहीं है कि उसे सत्य-असत्य की कसौटी बनाया जा सके। वीतराग महापुरुषों को
भगवती सूत्र व्याख्यान १८६