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________________ प्रश्न- भगवन्! वह ऊपर पड़ता है, नीचे पड़ता है, या तिरछा पड़ता है! उत्तर - हे गौतम! वह ऊपर भी पड़ता है, नीचे भी पड़ता है और तिरछा भी पड़ता है । प्रश्न- भगवन! वह सूक्ष्म जलकाय स्थूल जलकाय की भांति परस्पर समायुक्त होकर, बहुत समय तक रहता है? उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। वह सूक्ष्म जलकाय शीघ्र ही नष्ट हो जाता है । भगवन्! यह इसी प्रकार है, ऐसा कह कर गौतम स्वामी विचरते हैं । व्याख्यान श्री गौतम स्वामी ने प्रश्न किया- भगवन् ! क्या यह सत्य है कि सूक्ष्म स्नेहकाय- अप्काय - निरन्तर पड़ता रहता है? इस के उत्तर में भगवान् फरमाते हैं- हे गौतम! हां, सदा पड़ता रहता है । यह प्रमाणयुक्त ही पड़ता है, बादर अप्काय की तरह अपरिमित नहीं पड़ता । जैसे बादर अप्काय कहीं पड़ता है, कहीं नहीं पड़ता, इसी प्रकार सूक्ष्म स्नेहकाय भी कहीं पड़ता है, कहीं नहीं पड़ता- ऐसा नहीं। सूक्ष्म स्नेहकाय सदा पड़ता रहता है इसके लिए ऋतु, काल, दिन, रात आदि की मर्यादा नहीं है । यह दिन में भी गिरता है और रात में भी गिरता है । पूर्वाचार्यों का कथन कि सूक्ष्म स्नेहकाय दिन के पहले पहर में और रात्रि के पहले पहर में गिरता है। जाड़े का काल स्निग्धकाल है और ग्रीष्मकाल रूक्षकाल है । अतः सूक्ष्म स्नेहकाय (अप्काय) जाड़े और वर्षा के दिनों में पहर भर तथा गर्मी के दिनों में आधा पहर पड़ता है। इस सूक्ष्म स्नेहकाय से बचाने के लिए लेप लगे हुए पात्र आदि को बाहर नहीं रखना चाहिए। सामायिक में बैठे हुए लोग इसी कारण, खुली जगह में, रात्रि को उघाड़े सिर नहीं रहते। सूक्ष्म स्नेहकाय के संसर्ग से बचने के लिए ही साधुओं को रात्रि के समय ऊपर से खुली जगह में रहने का निषेध किया गया है। दिन को सूर्य के ताप से पुद्गल बीच में ही नष्ट हो जाते हैं, इसे रोक नहीं सकते हैं। साधु को आश्रय में रहना चाहिए। आश्रय चाहे वृक्ष का ही क्यों न हो? अब गौतम स्वामी पूछते हैं- भगवन् सूक्ष्म स्नेहकाय ऊर्ध्व लोक में गिरता है, अधोलोक में गिरता है या तिछें लोक में गिरता है ? इसका उत्तर भगवान् ने फरमाया- हे गौतम! तीनों ही लोकों में पड़ता है। १८४ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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