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________________ साहूकार बहुत होशियार था। उसने कुछ धन ऊपर रखा था और कुछ जमीन में गाड़ दिया था। धन इस चतुराई से गाड़ा गया था कि जानकार को ही मिल सकता था। उस गड़े हुए धन का हाल एक स्वामीभक्त मुनीम के सिवा और किसी को मालूम नहीं था। मुनीम ने उस लड़के से कहा-'या तो तुम अपनी अक्ल से चलो या मेरी अक्ल से चलो; मगर गुण्डों के इशारों पर मत नाचो। धन को वृथा मत गंवाओ।' मुनीम की बात लड़के ने नहीं मानी। मुनीम काम छोड़ के चला गया। धीरे धीरे साहूकार का लड़का जमीन-जायदाद सब कुछ बेचकर भिखारी बन गया। वह मांग मांग कर खाने लगा। मांगने पर कोई दे देता तो प्रसन्न होता, न देता तो उसके दुःख का ठिकाना न रहता। इसी प्रकार दिन बीतते गये। ___ एक बार मांगते-खाते वह अपने मुनीम की दुकान पर चला गया। लड़के ने मुनीम को तो नहीं पहचाना, परन्तु मुनीम ने उसे पहचान लिया। मुनीम ने उससे पूछा-कहो, यह क्या हाल है? लड़के ने कहा-हाल जो कुछ है, सो दीख रहा है। टुकड़ा हो तो खाने को दीजिए। तब मुनीम ने कहा-तुम्हारे घर के टुकड़े ही मेरे यहां है। मैं आपका वही मुनीम हूं। आपने मुझे पहचाना नहीं। __मुनीम को पहचान कर लड़का रोने लगा। मुनीम की आंखों में भी आंसू छलक आये। मुनीम ने उसे सान्त्वना देते हुए कहा-रो मत मेरे बेटे ! बाहर का धन गया, परन्तु भीतर की शक्ति अभी विद्यमान है। मुनीम लड़के को लेकर उसके घर आया और गड़ा हुआ निधान खजाना बतलाकर उसका काम बना दिया। लड़का बोला-मुनीमजी, मैं भिखारी बन चुका था। आपने यह निधान बतलाकर कितना अनुग्रह किया है, कह नहीं सकता। तब मुनीम जी बोले-भैया, तुम्हारी चीज तुम्हें बतला दी, इसमें मेरा क्या अनुग्रह है? मित्रों! तुम्हारे भीतर ईश्वरीय तत्व भरे हुए हैं, लेकिन इन्हें भूलकर तुम संसार के भिखारी बने हुए हो। भगवान कहते हैं-गौतम! शक्ति जीव में ही है। जीव ने ही अजीव को पकड़ रखा है। संसार में जितने पदार्थ हैं, सब प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जीव द्वारा बने हुए हैं। जीव ने ही पृथ्वी रूप आकार बना रक्खा है। पानी (शरीर) भी जीव ने ही बनाया है। अग्नि, पवन, चिऊंटी, हाथी, राजा, रंक, नारकी देव आदि सब रूप जीव ने ही धारण कर रक्खे हैं। किसी की ताकत नहीं कि वह जीव को पकड़े। जीव ने ही सब को पकड़ रक्खा है। - भगवती सूत्र व्याख्यान १६७
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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