________________
पर पृथ्वी ठहरी है, वह कभी तो थकता ही होगा! अगर वह शेषनाग हजार फन वाला है, इस कारण सम्पूर्ण पृथ्वी का भार सहन कर लेता है तो दिखाई देने वाले शेषनागों पर सेर दो सेर वजन तो ठहरना ही चाहिए। जब उन पर इतना भी वजन नहीं ठहरता तो यह कैसे माना जा सकता है कि एक शेषनाग पर इतनी विशाल पृथ्वी, सदा के लिए ठहरी हुई है।
___ अगर पृथ्वी को गाय के सींग पर ठहरी मानें तब भी यही प्रश्न उपस्थित होता है। आखिर गाय किस आधार पर ठहरी है? इसके सिवा जब एक गाय अपने सींग पर सारी पृथ्वी का बोझ लादे हुए है तो फिर पृथ्वी के ऊपर दिखलाई देने वाली गायों के सींग पर मन आधा मन वजन भी क्यों नहीं ठहरता? जब गाय के सींग पर इतना भी वजन नहीं ठहरता तो यह कैसे मान लिया जाय कि किसी गाय के सींग पर यह सम्पूर्ण पृथ्वी ठहरी हुई है।
यदि यह कहा जाय कि यह कथन आलंकारिक है। पृथ्वी को सहारा देने वाली शक्ति तो और कोई है। तो यह बतलाना चाहिए कि वह शक्ति कौन-सी है?
शेष का अर्थ कई लोग 'बाकी बचा करते हैं और कहते हैं कि पृथ्वी सत्य की शक्ति पर ठहरी है। इस प्रकार कोई-कोई शेषनाग पर, कोई कछुये पर कोई गाय के सींग पर और कोई सत्य पर पृथ्वी का ठहरना मानते हैं। परन्तु इन मान्यताओं में से किसी से भी आधार का प्रश्न हल नहीं होता।
तब गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में, भगवान् कहते हैं-हे गौतम! मैं आठ प्रकार की लोकस्थिति बतलाता हूं। इस पृथ्वी के नीचे, सब से पहले आकाश है। वह आकाश किस पर ठहरा है, यह प्रश्न नहीं हो सकता, क्योंकि आकाश स्व-प्रतिष्ठ है-वह अपने आप पर ही ठहरा रहता है। उसके लिए अन्य आधार की आवश्यकता नहीं होती। आकाश पर वायु है। वायु के दो भेद हैं-घनवायु और तनुवायु। यों जैन शास्त्रों में वायु के सात लाख भेद बतलाये गये हैं, और विज्ञान भी वायु के बहुतेरे भेद स्वीकार करता है, मगर यहां सिर्फ दो भेद ही किये गये हैं, क्योंकि यहां उन्हीं की उपयोगिता है। आकाश के पश्चात् तनुवात है और तनुवात के पश्चात् घनवात है। तनुवात का मतलब है-पतली हवा। हल्की चीज भारी चीज को धारण कर लेती है अतः तनुवात पर घनवात अर्थात् मोटी हवा है। घनवात पर घनोदधि अर्थात् जमा हुआ मोटा पानी है। उस पानी पर यह पृथ्वी ठहरी हुई है। पृथ्वी के सहारे त्रस और स्थावर जीव रहे हुए हैं। १६४ श्री जवाहर किरणावली.