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________________ पुस्तकें पढ़ ली हैं, धर्म-अधर्म आदि सब ढ़ोंग है। हम इस ढ़ोंग में क्यो पड़ें? अधर्म आदि सब ढ़ोग है। हम इस ढोग में क्यों पड़े? इस प्रकार विभिन्न विचारों से प्रेरित होकर लोग प्रश्न नहीं करते। कुछ शायद ऐसे भी होंगे जो सोचते होंगे कि कहीं प्रश्न पूछने से गुरुजी गुस्सा हो गये तो क्या होगा! कुछ लोग अभिमान से प्रश्न नहीं पूछते और कुछ अज्ञान से। मगर वास्तव में देखा जाय तो यह सब कल्पनाएं मानसिक दुर्बलता का परिणाम हैं। प्रश्न करने में, लाभ के सिवा हानि कुछ भी नहीं है। अगर कोई अपने संचित ज्ञान के खजाने को लुटाना चाहता है तो लूटने में तुम्हारी हानि क्या है? तुम्हें अनायास ही जो निधि प्राप्त हो सकती है, उसके लिए भी तुम नाना प्रकार के संकल्प-विकल्प करते हो! यह तुम्हारे लिए दुर्भाग्य की बात नहीं तो क्या है? हां, प्रश्न करो, मगर उसमें उद्धतता नहीं, नम्रता हो, जिगिसा नहीं जिज्ञाषा हो। इस प्रकार अनेक गुणों से विभूषित आर्य रोह अनगार ऐसे स्थान पर बैठे थे, जो भगवान् से बहुत दूर नहीं था। गुरु की दृष्टि में रहना कच्छपी भक्ति है। कहा जाता है कि कछुआ अपने अंडों को दृष्टि से पालता है। इसी प्रकार भक्त या शिष्य भी भगवान् या गुरु से इतनी ही दूर बैठता है, जहां भगवान् या गुरु की नजर पड़ती हो। गुरु की अमृतमयी दृष्टि से ही शिष्य को आनन्द रहता है। व्यवहार में कहा जाता है कि अमुक व्यक्ति पर मेरी नजर है! दृष्टि में रहने से भी बड़े-बड़े अनर्थ टल जाते हैं। रोह अनगार भगवान् से अदूर और गोदुहासन से बैठे थे। उनके दोनों घुटने ऊपर सिर नीचे था। अर्थात वह ऐसे बैठे थे जैसे गौ दुहने के समय गुवाल बैठता है। गोदुहासन से बैठे हुए अनगार रोह ध्यान के कोठे में तत्लीन हो रहे हैं और तत्त्व-विचार करके ज्ञान का अमृतपान कर रहे हैं। रोह अनगार तप और संयम में विचरते थे। संयम, जीवन की दिव्य मात्रा है। जिस आत्मा को यह प्राप्त हो, उसका प्रभाव अपूर्व और अद्भुत हो जाता है। संयम, तप के बिना निभ नहीं सकता। संयम और तप आत्मा को मोक्ष पहुंचाने वाले रथ के दो पहिया हैं। अथवा यों कहिए कि यह दोनों धर्म-रथ के दो पहिया हैं। रोह अनगार जब ध्यान के कोठे में तल्लीन होते हुए तप संयम में विचरते थे, उस समय वे जात संशय हुए। जात संशय आदि पदों की व्याख्या - भगवती सूत्र व्याख्यान १४३
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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