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शिक्षा दी गई है कि तुम्हारे मन की जरासी बात पूरी हो जाने के कारण तुम उन साधक योगियों की मिथ्या प्रशंसा करके उनकी उन्नति मत रोको। उन्हें अवनति के गड्ढे में न डालो।
___ अब यह प्रश्न उपस्थित होता है कि संसार में पूर्ण पुरुष किसे माना जा सकता है? इसका उत्तर यह है कि जिसने अनादिकालीन राग-द्वेष आदि समस्त आत्मिक विकारों पर पूर्ण विजय प्राप्त कर ली है, जिसका ज्ञान पूर्णता की पराकाष्ठा पर पहुंच गया है जिससे कोई बात छिपी नहीं है। इस प्रकार जो जिन, अर्हन्त और केवली हो, वे ही पूर्ण पुरुष हैं।
चार ज्ञान के धनी और अनुपम बुद्धि के अक्षय भंडार गौतम स्वामी पूर्ण पुरुष-'अलमस्तु' की व्याख्या न जानते हों- यह संभव नहीं। लेकिन उन्होंने संसार का भ्रम मिटाने के लिये अपने मुख से न कहकर, विशेष श्रद्धा एवं प्रतीति उत्पन्न करने के लिए भगवान् के मुखारविन्द से कहलाया है। स्वयं जानते हुए भी महापुरुष से कहलाने की बड़ी अच्छी दलाली गौतम स्वामी ने की है।
___भगवान् के मुख से कहलाने में एक सूचना और भी है। तुच्छ बुद्धि मनुष्य अपने मन में सोचते हैं कि किसी बात का निर्णय अगर दूसरे महापुरुष से कराऊंगा तो मेरी लघुता प्रकट होगी। लोग समझेंगे इन्हें इतना भी नहीं आता। मगर गौतम स्वामी में यह निर्बलता नहीं थी। उनमें ऐसा विचार होता तो उनके हृदय से गुरुभक्ति चली जाती। इसके साथ ही भगवान् से निर्णय न कराने पर ओर स्वयं ही निर्णय कर लेने पर वह पद भी चक्कर में पड़ जाता। जिस पर वह पहुंचना चाहते थे। वह केवली पद राग-द्वेष नष्ट करने पर ही मिल सकता है। राग-द्वेष नष्ट करने के लिए गौतम स्वामी ने अपने आपको लघु बनाने का मार्ग पसंद किया।
पर कर मेरु समान, आप रहे रज कण जिसा।
ते मानव धन जाण, मृत्युलोक में राजिया।।
सचमुच ऐसे महापुरुष ही धन्य हैं। अहंकारी ठोकरें खाते हैं। अहंकारियों को शुभगति प्राप्त नहीं होती। भारी पत्थर सिर पर नहीं चढ़ता, लेकिन वही पत्थर जब रज-कण बन जाता है तब राजा के भी सिर पर चढ़ जाता है। गौतम स्वामी ने इस प्रश्न का निर्णय भगवान से करवा कर यह शिक्षा दी है कि अगर ऊपर चढ़ना है तो छोटे बनो, पत्थर के समान भारी अहंकारी मत बनो। जिस दिन तुम्हारे भीतर सच्ची लघुता आ जायगी, उस दिन तुम त्रैलोक्य के भी पूज्य बन जाओगे। २ श्री जवाहर किरणावली