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________________ को तीन दिशा की क्रिया भी लगती है, चार की भी लगती है और पांच की भी लगती है। उत्कृष्ट छह दिशा की क्रिया तो है ही। अब गौतम स्वामी पूछते हैं-भगवन्! प्राणातिपात से ही क्रिया लगती है या और किसी तरह से भी क्रिया लगती है? भगवान् ने फरमाया-हे गौतम! अठारह तरह से क्रिया लगती है। प्राणातिपात के समान ही शेष सत्तरह स्थानों को भी समझ लेना चाहिए। प्राणातिपात क्रिया के समान मृषावाद की क्रिया के भी प्रश्नोत्तर समझना। जैसे-भगवन्! क्या जीव मृषावाद की क्रिया करता है? भगवान् ने उत्तर दिया-हां, गौतम! करता है। साधारण झूठ तो सभी की समझ में आ जाता है, परन्तु तात्विक (तत्च से सम्बन्ध रखने वाले) झूठ को समझ लेना इतना सरल नहीं है। घड़े को घड़ा कहना, कपड़ा नहीं कहना यह साधारण सत्य है। घड़े को घड़ा कहने की बात व्यावहारिक है, परन्तु पारमार्थिक दृष्टि से देखना चाहिए कि एकान्त दृष्टि से घड़े को घड़ा समझा और कहा है या अनेकांत दृष्टि से? घट के कारणों की प्रतिपत्ति में कोई विपर्यास तो नहीं है? उदाहरणार्थ-प्रश्न किया गया कि घट की उत्पत्ति कहां से हुई है? उत्तर होगा-कुम्हार से। तब पूछा गया-कुम्हार उपादान कारण है ? या निमित्त कारण है? अगर किसी ने कुम्हार को उपादान कारण कहा तो समझिए कि यह कथन मिथ्या है। क्योंकि उपादान कारण पहले तो कारण रूप होता है फिर कर्ता और निमित्त कारण के व्यापार से स्वयं कार्यरूप में परिणत हो जाता है। जैसे कपड़ा सूत से बना है, अतः सूत कपड़े का उपादान कारण है, क्योंकि सूत, जुलाहे और करघा आदि निमित्त कारणों के संसर्ग से स्वयं ही कपड़े के रूप में परिणत हो जाता है। अगर सूत के आगे चलकर विचार करें तो रूई उपादान कारण ठहरेगी और सूत उसका कार्य होगा। इस प्रकार आगे बढ़ते जाने पर अन्त में विवाद खड़ा हो जाता है। जैसे प्रश्न किया गया-रूई कहां से आई? उत्तर मिला-मिट्टी से। फिर प्रश्न हुआ-मिट्टी कहां से आई? उत्तर मिलेगा-परमाणु से। यह अन्त हुआ। इस पर प्रश्न उपस्थित होता है-परमाणु कहां से आये? इस प्रश्न के उत्तर में मतभेद होता है। कोई कहता है-ईश्वर से, कोई कहता है परमाणु सदैव विद्यमान रहते हैं। इस सम्बन्ध में जैन धर्म की मान्यता यह है कि जैसे जीव अनादि से है, उसी प्रकार पुद्गल द्रव्य भी अनादि से है। ईश्वरवादी जैसे ईश्वर को अनादि मानते हैं उसी प्रकार पुद्गल को अनादि मानने में कोई बाधा नहीं दिखाई देती है। - भगवती सूत्र व्याख्यान १२५
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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