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________________ लेकर पहनने की गड़बड़ में पड़े हैं, लेकिन जब तक आदमी अपने आपके सहारे न होगा, तब तक गड़बड़ नहीं मिटेगी। पाप के हिस्से होने का कानून संसार-व्यवहार में भी नहीं है। राजकीय नियम यह है कि यदि एक अपराध चार आदमी मिलकर करें तो उन चारों को ही अपराध का पूरा-पूरा दंड दिया जाता है। दंड में हिस्सा बांट लेने को स्थान नहीं है। कर्ता, कर्म और क्रिया, तीन अलग-अलग वस्तु हैं। इन तीनों के समुचित सहकार से कार्य होता है। जिसके करने से क्रिया हो वह कर्ता कहलाता है। अगर कर्त्ता न हो तो क्रिया नहीं हो सकती। कर्ता चाहे अधिक हों, परन्तु क्रिया के पाप में भाग नहीं होगा। प्रत्येक कर्ता को उसके आशय के अनुसार पाप लगेगा। पाप का बंटवारा नहीं होगा। अगर पच्चीस आदमियों ने मिलकर कोई अपराध किया है तो इन सबकी जांच अलग-अलग होगी कि किसने किस नियत से अपराध किया है? फिर जिसने जिस नियत से अपराध किया होगा, उसे उसीके अनुसार दण्ड दिया जायगा। इसी प्रकार शास्त्र का कथन है कि पाप का भाग नहीं होगा, किन्तु अपने-अपने अध्यवसायों के अनुसार सब को फल भोगना पड़ेगा। पच्चीस आदमी मिलकर अगर एक मनुष्य की हत्या करते हैं तो पच्चीसों को क्रियाएं लगेंगी। हां, अगर इन पच्चीस आदमियों में पांच आदमी जबर्दस्ती शामिल कर लिये गये हैं उन्होंने मारने में भाग नहीं लिया है, तो उन्हें क्रिया नहीं लगेगी। दुनिया का कानून अपूर्ण है और ज्ञानियों का कानून पूर्ण है। जब अपूर्ण कानून भी दंड के हिस्से नहीं करता तो पूर्ण कानून क्यों हिस्से करेगा? सारांश यह है कि जो जीव जिस भाव से, जैसी क्रिया करेगा उसे उसी प्रकार का फल भोगना पड़ेगा। आत्मा अपने ही किये का फल भोगता है। दूसरे के पापों का फल नहीं भोगता। जब अपनी वृत्तियां आप में नहीं रहती-आत्मा अपने स्वभाव में स्थित नहीं रहता, तब आत्मा पापक्रिया करता है। अगर बाहर जाने वाली वृत्तियों को आत्मा की ही ओर मोड़ लिया जाय तो पाप होने का कोई कारण नहीं इसके पश्चात गौतम स्वामी पूछते हैं-भगवन् ! आत्मा प्राणातिपात क्रिया अनुपूर्वी से करता है या अनानुपूर्वी से ! __ हाथ में पांच उंगलिया हैं। उन्हें एक के बाद दूसरी, दूसरी के बाद तीसरी इस प्रकार क्रम से गणना करना अनुपूर्वी है। इसे पूर्वानुपूर्वी भी कहते - भगवती सूत्र व्याख्यान १२३ 2888888888888888856060 82888888888
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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