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________________ था? जिन महापुरुषों ने पूर्णता की स्थिति प्राप्त कर ली है, उन्हें उपदेश की आवश्यकता ही नहीं। उपदेश उनके लिए है भी नहीं। अपूर्ण स्थिति वालों के लिए ही उपदेश दिया जाता है। ऐसे लोगों को धर्म के संबंध में अगर कोई तर्क उपजे तो उसका समाधान करना उचित है। जहां तक धर्म का संबंध है, तर्क को प्रधानता नहीं देना चाहिए। मगर उत्पन्न हुए तर्क का समाधान न करना भी अनुचित है और बाल की खाल निकालने की कुचेष्टा करना भी अनुचित है। एकान्त तर्क ही तर्क पर तुल जाने से नास्तिकता आती है। हां, तर्क शक्ति को भी धर्म में उचित स्थान है, मगर नास्तिकताजनक तर्क हानिकारक ही हैं। वास्तव में तर्क इतनी अस्थिर और चंचल है कि वह कहीं ठहरती नहीं और सभी कुछ इन्द्रियों और बुद्धि द्वारा समझना चाहता है। मगर मनुष्य का सामर्थ्य इतना कम है कि बहुत-से सूक्ष्म तत्त्व जो अनुभवगम्य ही होते हैं, उसकी पकड़ में नहीं आते। इस कारण अश्रद्धा, संशय और मोह उत्पन्न होता है और चित्त की यह मूढ़ताएं आत्मविनाश का कारण होती हैं। ज्ञानियों ने क्रिया लगने के पांच कारण बतलाये हैं। चाहे यह कारण ज्ञान में हों या नहीं, परन्तु इन पांच शक्तियों से कर्म-बंध की क्रिया बराबर जारी रहती है। वह पांच कारण यह हैं :- मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय, और योग । इन पांच द्वारों से जीव-रूपी तालाब में कर्म रूपी पानी आता है। यद्यपि कर्मों के आगमन के ये पांच द्वार हैं, तथापि कर्म आते हैं करने से ही, बिना किये नहीं आते। अगर बिना किये कर्म आने लगे तो जड़ पत्थर आदि और सिद्धों को भी कर्मबंध होने लगें। 'बिना कीधा लागे नहीं। किधा कर्मज होय। कर्म कमाया आपणा, तेथी सुख दुख होय। इम समकित मन स्थिर करो।' अब सन्देह यह होता है कि यह मिथ्यात्व की क्रिया में चौदह राजू लोक की क्रिया लगती है; सो कैसे? इस संबंध में उचित यही है कि तत्त्वज्ञान प्राप्त करके मिथ्यात्व की क्रियानष्ट करो। अगर मिथ्यात्व क्रिया का नाश न करोगे तो मिथ्यात्व की क्रिया लगेगी ही। धर्म के शास्त्रों ने मिथ्यात्व का तिरस्कार करके यही कहा है कि करोड़ों वर्ष तपने पर भी आत्मज्ञान के बिना मोक्ष न होगा। क्योंकि जब तक आत्मज्ञान न होगा, कर्म बंधते रहेंगे और जब तक कर्म बंधते रहेंगे, मोक्ष नहीं होगा। उदाहरणार्थ, कल्पना कीजिए, एक आदमी अपराध को अपराध समझ कर कारणवश करता है। दूसरा आदमी पागल है। वह अपराध को १२० श्री जवाहर किरणावली
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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