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________________ बहुतेरे मनुष्य ऊपर की क्रिया करने में लगे रहते हैं, परन्तु अपने मन की ओर नहीं देखते। मन में क्या-क्या भरा है? इस ओर उनका ध्यान नहीं जाता। लेकिन जब तक मन स्वच्छ नहीं है, तब तक केवल ऊपरी दिखावटी क्रिया सार्थक नहीं होती। कहा भी है - ___ यस्मात् क्रियाः प्रतिफलन्ति न भाव शून्याः अर्थात् – भावहीन क्रियाएं सफल नहीं होती हैं। कहा है - __ एक बगुला बैठो तीर, ध्यान धर नीर में, एक लोग कहे याको, चित्त बस्यो रघुवीर में। याको चित्त माछला मांय, जीव की घात है. हा वाजिन्द दगाबाज को, नाहिं मिले रघुनाथ है। ऐसी क्रिया से काम नहीं होता। किसी ने, जलाशय के किनारे पर ध्यान लगाये बैठे बगुले को देखा। उसे देख कर उसने कहा-ओह ! यहां के तो पक्षी भी योगियों की तरह ध्यान लगाते हैं! बगुला ध्यान लगाये बैठा था, मगर मन के भाव कहाँ छिप सकते थे? जब तक मछली नजर न आती तब तक वह ध्यान में बैठा रहता और जैसे ही मछली नजर आई कि उस पर झपटता और उसे मार खाता। इसी प्रकार बहुत से लोग मुंहपत्ती बांध कर या तिलक लगाकर, बकध्यानी बनकर लोगों को ठगते हैं। लोग उसे बकध्यानी समझते हुए भी लोभ-लालच आदि से प्रेरित होकर उपेक्षा करते हैं। मगर शास्त्र तो ऐसे लोगों को मिथ्याचारी ही कहता है। __शास्त्र कहता है दुर्भाव से प्रेरित होकर अगर मन से भी किसी जीव का स्पर्श करोगे तो पाप होगा। हां, अपने ध्यान में मग्न रहे, पाप की ओर मन न जाने दे, तो पाप से बचाव हो सकता है। तदनन्तर गौतम पूछते हैं-भगवन्! प्राणातिपात क्रिया एक दिशा से स्पर्श होने पर लगती है या छहों दिशाओं से स्पर्श होने पर? यहां एक आशंका और खड़ी की जा सकती है कि एकेन्द्रिय-पृथ्वी काय आदि-जीवों के मन भी नहीं होता वे मन से भी किसी दूसरे जीव का स्पर्श नहीं करते, फिर उन्हें हिंसा कैसे लगती है? इसका समाधान यह है कि एकेन्द्रिय जीवों के केवल द्रव्यमन-संकल्प-विकल्प करने का नहीं है, किन्तु मन की एक अस्पष्ट मात्रा उनमें भी पाई जाती है। अंधे पुरुष के आंख न होने पर भी जैसे वह पंचेन्द्रिय कहलाता है, उसी प्रकार उस अस्पष्ट मन के कारण उन्हें भी एक अपेक्षा से मन वाला कहा जा सकता है, एकेन्द्रिय जीव में भी प्रशस्त या अप्रशस्त अध्यवसाय होता है। अध्यवसाय के कारण ही उन्हें ११६ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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