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है कि जो पुद्गल स्पर्श में तथा आस्वाद में आये बिना ही नष्ट हो जाते हैं, उनमें कौन-से अधिक हैं? अर्थात् स्पर्श में न आने वाले पुद्गल अधिक हैं या आस्वाद में न आने वाले ? इस प्रश्न का उत्तर यह दिया गया है कि आस्वाद में न आने वाले पुद्गल थोड़े हैं और स्पर्श न किये जाने वाले पुद्गल अनन्त गुण है।
त्रीन्दिय और चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति में अन्तर हैं त्रीन्द्रिय जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट 49 रात दिन की है। चौइन्द्रिय जीवों की जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट छह मास की है। आहार आदि में जो अन्तर है, वह पहले बतलाया जा चुका है।
पंचेन्द्रिय तिर्यंच का आहार षष्ठभक्त अर्थात् दो दिन बीत जाने पर बतलाया गया है। यह आहार देवकुरु और और उत्तर कुरु के युगलिक तिर्यचों की अपेक्षा कहा गया हैं। इसी प्रकार मनुष्यों का जो अष्टमभक्त अर्थात तीन दिन बाद आहार कहा है, वह भी देवकुरु, उत्तरकुरु के युगमलिक मनुष्यों की अथवा भरतादि में जब प्रथम आरा प्रारम्भ होता है या छठा आरा उतसर्पिणी का पूर्ण होता है, उस समय के मनुष्यों की अपेक्षा समझना चाहिए।
वान्: व्यन्तर की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक पल्योपम की है ज्योतिषी देवों की जघन्य पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट एक पल्योपम और एक लाख वर्ष की है।
दो मुहूर्त से लेकर नौ मुहूर्त तक को मुहूर्त्तपृथक्त्व कहते हैं । जघन्य मुहूर्तपृथक्त्व में दो या तीन मुहूर्त समझना चाहिए और उत्कृष्ट में आठ या नौ मुहूर्त लेना चाहिए ।
वैमानिकों की स्थिति औधिक कही है । औधिक का परिमाण एक पल्योपम से लेकर तेतीस सागरोपम तक है। इसमें जघन्य स्थिति सौधर्म देवलोक की अपेक्षा और उत्कृष्ट अनुत्तर विमानों की अपेक्षा से कही गई है। श्वासोच्छ्वास का जघन्य परिमाण जघन्य स्थिति वालों की अपेक्षा और उत्कृष्ट परिमाण उत्कृष्ट स्थिति वालों की अपेक्षा से जानना चाहिए । यहां संग्रह - गाथा कही है, जो इस प्रकार है:
जस्स जाई सागराई तस्स ठिई तत्तिएहिं पक्खेहिं । उस्साओ देवाणं, वाससहस्सेहिं आहारो ||
श्री भगवती सूत्र व्याख्यान २६७