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________________ छद्मस्थ हैं। छद्मस्थ होने के कारण ज्ञान में कुछ कमी रहती है। जिसके ज्ञान में कुछ कमी न हो वह छद्मस्थ ही कैसा? अतएव छद्मत्थ के लिए कुछ भी अनाभोग न रहे यह संभावना नहीं की जा सकती । ज्ञान को ढँकने वाला ज्ञानावरण कर्म छद्मस्थता के कारण विद्यमान रहता है। अगर छद्मस्थ में अज्ञान की जरा भी मात्रा नहीं है तो फिर ज्ञानावरण ने किसे ढँक रक्खा है? ज्ञानावरण कर्म क्या व्यर्थ हैं ? नहीं । जब ज्ञानावरण कर्म हैं तो किन्हीं अशों में अज्ञान भी अवश्य है । ऐसी अवस्था में गौतम स्वामी ने अगर भगवान महावीर से प्रश्न किये तो क्या आश्चर्य की बात है ? एक बात और है। यह नियम नहीं कि अनजान ही प्रश्न करे, जानकार न करे। जो जानता है वह भी प्रश्न कर सकता है। कदाचित् गौतम स्वामी इन प्रश्नों का उत्तर जानते भी हों तब भी प्रश्न करना संभव है। आप पूछ सकते हैं कि जानी हुई बात पूछने की क्या आवश्यकता है? इसका उत्तर होगा - उस बात पर अधिक प्रकाश डलवाने के लिए अपना बोध बढ़ाने के लिए । अथवा जिन लोगों को प्रश्न पूछते संकोच होता है या पूछना नहीं आता या जिन्हें इस विषय में विपरीत धारणा हो रही है, उनके लाभ के लिए, उन्हें यथार्थ बोध कराने के लिए, गौतम स्वामी ने ये प्रश्न पूछे हैं। भले ही गौतम स्वामी उन्हें स्वयं समझाने में समर्थ होगें, तथापि भगवान के मुखारविन्द से निकलने वाला प्रत्येक शब्द विशेष प्रभावशाली और प्रामाणिक होता है, इस विचार से उन्होंने भगवान् के द्वारा ही इन प्रश्नों का उत्तर प्रकट करवाया है। केशी स्वामी को स्वयं कोई संदेह नहीं था लेकिन शिष्यों का सन्देह हरण करने के लिए गौतम स्वामी से उन्होंने प्रश्न किये थे । उन प्रश्नों का रूप भी ऐसा है, मानो उन्हें स्वयं ही संदेह हो और स्वयं ही प्रश्न करते हों । साहू गोयम पण्णा ते, छिण्णो मे संसओ इमो । । अण्णोवि संसओ, मज्झ तं मे कहसु गोयमा । । उत्ता. 23/28 अर्थात् - हे गौतम! आपने मेरा यह संशय तो दूर कर दिया लेकिन एक और संशय कहता हूँ । न्यायालय में, न्यायाधीश के समक्ष वकील यह नहीं कहता कि उसका यह दावा है' मगर वह कहता है 'मेरा यह दावा है ।' गौतम स्वामी संसार के अज्ञ जीवों के वकील बने हैं। वे हम लोगों की ओर से भगवान के समक्ष वकालत करते हैं। हम लोगों पर गौतम स्वामी का कैसा महान् उपकार है! अगर उन्होंने यह वकालत न की होती तो आज हम लोगों को इन बातों का ज्ञान किस प्रकार होता? आज गुणग्राहक कम होने से चाहे इन वचनों २०६ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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