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________________ के साथ जो कर्म परमाणु लगे हुए हैं और सुख-दुख देने वाले कर्म कहलाते हैं उन्हें ध्यान रूपी प्रज्वलित अग्नि से फिर पुद्गल रूप बना देना, अर्थात उन्हें अकर्म के रूप में पहुँचा देना दग्ध करना कहा जाता है। ध्यान की अग्नि से भस्म किये हुए कर्म फिर भोगने नहीं पड़ते। ध्यान - अग्नि से भस्म हुए कर्म कर्म ही नहीं रहते अकर्म रूप पुद्गल बन जाते हैं। ध्यान रूपी अग्नि से कर्म को अकर्म रूप परिणत करने में, दग्ध करने में, अन्त मुहूर्त काल लगता है इतने ही समय में ध्यान के परम प्रभाव से कर्मभस्म हो जाते हैं मगर इस अन्त मुहूर्त्तकाल में भी असंख्यात समय होते हैं इन असंख्यात समयों में से पहले समय में जब कर्म दग्ध होने लगते हैं तो उन्हें दग्ध हुए कहना चाहिए। गौतम स्वामी का आठवाँ प्रश्न है: मिज्जमाणे मडे? अर्थात- जो मर रहा है वह मरा ऐसा कहना चाहिए? पूर्व बद्ध आयु कर्म से रहित होना मरना कहलाता है। मरने का अर्थ आत्मा का नाश हो जाना नहीं है। आत्मा आयु कर्म के साथ शरीर में रहकर चेष्टा करता है। जब आत्मा आयु कर्म से रहित हो जाता है, आयु कर्म के साथ नहीं रहता है तब चेष्टा बन्द हो जाती है और आत्मा मोक्ष प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार आयु के पुद्गलों का नाश हो जाना मरण है। यद्यपि आयु के पुद्गलों का नाश अंसख्यात समय में होता है, फिर भी उनमें असंख्यात समयों में से प्रथम समय में भी मरा कहा जा सकता है। शास्त्र का कथन है कि एक समय के जन्मे हुए बालक का भी आवीचि मरण हो रहा है। आवीचि मरण के द्वारा प्रत्येक प्राणी प्रति समय मृत्यु को प्राप्त होता है। इस प्रकार यद्यपि मरने में अंसख्यात समय लगते हैं तथापि जो मरने लगा है, उसे मरा कहना चाहिए। कल्पना कीजिए, गर्म पानी का हंडा चूल्हे पर से उतार कर नीचे रक्खा है। वह गर्म पानी प्रतिक्षण ठंडा होता है लेकिन छूने वाले को प्रथम क्षण में नहीं मालूम होता कि यह ठंडा हो रहा है मगर प्रथम क्षण में उसका कुछ ठंडा होना निश्चित है। अगर प्रथम क्षण में वह जरा भी ठंडा न हो तो फिर कभी ठंडा न होगा ज्यों का त्यों गर्म बना रहेगा। अतएव यह मानना चाहिए कि पानी एक-एक क्षण में ठंडा हो रहा है। भले ही प्रतिक्षण का ठंडा होना किसी को प्रत्यक्ष ज्ञात न हो मगर उसके ठंडे होने में शंका को अवकाश नहीं है। श्री भगवती सूत्र व्याख्यान २०३
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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