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पाठ - 10 प्राकृत वाक्यों का संस्कृत एवं हिन्दी अनुवाद प्राकृत
संस्कृत | हिन्दी हे खमासमण ! हे क्षमाश्रमण ! .
| हे क्षमाप्रधान मुनि ! हं मत्थएण वंदामि । | अहं मस्तकेन वन्दे ।। मैं मस्तक से
वंदन करता हूँ। | सव्वेसु धम्मेसु जत्थ | सर्वेषु धर्मेषु यत्र सभी धर्मों में जहाँ | पाणाइवाओ प्राणातिपातो न जीवहिंसा नहीं है, न विज्जइ, सो धम्मो | विद्यते, स धर्मः | वह धर्म सुंदर है। सोहणो होइ। शोभनो भवति । |जक्खो समणाणं यक्ष: श्रमणानां यक्ष साधुओं की | साहज्जं कुणेइ। साहाय्यं करोति । | सहायता करता है। वुड्डत्तणे वि मूढाणं वृद्धत्वेऽपि मूढानां वृद्धावस्था में भी मूर्ख नराणं विसया न नराणां विषया मनुष्यों के विषय उवसमन्ते । नोपशाम्यन्ति । | उपशांत नहीं होते हैं।
5. प्रा. पच्चूसे सो उज्जाणं जाइ, तत्थ थिआई पुप्फाइं जिणिंदाणमच्चणाय
घरं आणेइ । सं. प्रत्यूषे स उद्यानं याति, तत्र स्थितानि पुष्पाणि जिनेन्द्राणामर्चनाय
गृहमानयति । हि. वह सुबह बगीचे में जाता है, वहाँ रहे हुए फूलों को जिनेवरों की
पूजा के लिए घर लाता है। प्रा. समणा चेइएसु निच्चं वच्चिरे, देवे य वंदति । सं. श्रमणाश्चैत्येषु नित्यं व्रजन्ति , देवांश्च वन्दन्ते । हि. मुनिगण हमेशा जिनालयों में जाते हैं और देवों को वंदन करते हैं। प्रा. देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो । सं. देवा अपि तं नमस्यन्ति , यस्य धर्मे सदा मनः । हि. जिसका मन सदा धर्म में जुड़ा हुआ है, उसे देव भी नमस्कार करते
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