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हिन्दी
प्राकृत
संस्कृत 18. तुम दो देते हो। तुब्भे दो दाअइत्था || युवां द्वौ दत्थः । 19. हम च्युत होते हैं।। | अम्हे चविमो । वयं च्यवामः ।
हम गिरते हैं। 20.| तुम दो खिसकते हो । तुम्हे दो सरित्था । युवां द्वौ सस्थः । 21.| तू होता है।
तुं होएसि । त्वं भवसि । 22.| तुम स्नान करते हो । | तुज्झे ण्हाएह । यूयं स्नाथ । 23.| हम खेद करते हैं। अम्हे गिलाएमो । वयं ग्लायामः ।
| वे ध्यान करते हैं। ते झाएइरे । ते ध्यायन्ति । 25. हम दो प्रकाशित होते हैं । अम्हे दो भाएमो । आवां द्वौ भावः । 26.| तुम होते हो।
तुज्झे होइत्था । यूयं भवथ । 27.| तुम दो उद्वेग करते हो। तुम्हे दो गिलाएह । युवां द्वौ ग्लायथः। 28. तुम छुपाते हो। तुज्झे एहवित्था । | यूयं हनुध्वे । | हम तैरते हैं ।
अम्हे तरिमो । वयं तरामः । | तुम कोप करते हो। तुब्भे कुप्पइत्था । यूयं कुप्यथ ।
वह प्रकाशित होता है। सो भाअइ । स भाति । 32. तुम उत्पन्न होते हो । तुम्हे जाअह । यूयं जायध्वे । 33. मैं उत्पन्न होता हूँ। हं जाएमि । अहं जाये।
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