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उनको (वृद्ध पुरुषों को ) ही मान्य किया ।
क्योंकि “वृद्धपुरुष कभी अहित में प्रवृत्ति नहीं करते हैं । अतः वृद्धों का अनुसरण करना चाहिए; वृद्धों का अनुसरण करनेवाले भी पाप में प्रवृत्ति नहीं करते हैं । किस कारण ? तो कहते हैं - जीवों को सहवास से गुण उत्पन्न होते हैं । अतः कहा है -
उत्तम पुरुष का समागम करनेवाले शील-सदाचार से हीन हो तो भी शीलवान बनते हैं, जैसे मेरुपर्वत पर लगा हुआ तृण भी सुवर्णत्व को प्राप्त करता है । (185)
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