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चत्तारि सरणं पवज्जामि :- अरिहंते सरणं पवज्जामि, सिद्धे सरणं पवज्जामि, साहू सरणं पवज्जामि, केवलिपन्नत्तं धम्मं सरणं पवज्जामि ।।
संस्कृत अनुवाद
चत्वारि मङ्गलानि :- अर्हन्तो मङ्गलम् सिद्धा मङ्गलम् साधवो मङ्गलम्, केवलिप्रज्ञप्तो धर्मो मङ्गलम् ||
चत्वारो लोकोत्तमा :- अर्हन्तो लोकोत्तमाः, सिद्धा लोकोत्तमाः साधवो लोकोत्तमाः, केवलिप्रज्ञप्तो धर्मो लोकोत्तमाः ॥
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चत्वारि शरणानि प्रपद्ये, अर्हतः शरणं प्रपद्ये, सिद्धान् शरणं प्रपद्ये, साधून् शरणं प्रपद्ये, केवलिप्रज्ञप्तं धर्मं शरणं प्रपद्ये ||
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हिन्दी अनुवाद
चार (पदार्थ) मंगल स्वरूप हैं :- (1) अरिहन्त भ. मंगल हैं, ( 2 ) सिद्ध भ. मंगल हैं, (3) साधु भ. मंगल हैं और (4) केवली भगवन्त द्वारा बताया हुआ धर्म मंगल है |
चार (व्यक्ति) लोक में उत्तम हैं :- (1) अरिहन्त भ. लोक में श्रेष्ठ हैं, (2) सिद्ध भ. जगत् में उत्तम हैं, (3) साधु भ. लोक में श्रेष्ठ हैं, और (4) केवली भ. द्वारा बताया हुआ धर्म जगत् में उत्तम है ।
मैं चार ( व्यक्तियों) की शरण स्वीकार करता हूँ :- (1) अरिहन्त भगवन्तों की शरण स्वीकार करता हूँ, (2) सिद्ध भगवन्तों की शरण स्वीकार करता हूँ, (3) साधु भगवन्तों की शरण स्वीकार करता हूँ और (4) केवली भगवन्तों द्वारा बताये हुए धर्म की शरण स्वीकार करता हूँ ।
(2) सीयावण्णणं (प्राकृत)
सीया उवणीया जिण- वरस्स जर-मरणविप्पमुक्कस्य । ओसत्तमल्लदामा, जल- थलय - दिव्वकुसुमेहिं 1179 ।।
सिबिया मज्झयारे, दिव्वं वररयणरूवचेंचइयं । सीहासणं महरिहं, सपादपीठं जिणवरस्स । 180 ।। आलइयमालमउडो, भासुरबोंदी वराभरणधारी । खोमियवत्थणियत्थो, जस्स य मोल्लं सयसहस्सं । । 81 ।। छट्ठेण उ भत्तेणं, अज्झवसाणेण सुंदरेण जिणो । लेसाहिं विसुज्झतो, आरुहई उत्तमं सीयं ।। 82।।
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