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________________ सं. यत्र रमणीनां रमणीयं रूपं प्रेक्ष्याऽऽमर्यः । लज्जमाना इव चिन्तया , कथमपि निद्रां न प्राप्नुवन्ति ।।36।। हि. जहाँ स्त्रियों के मनोहर रूप को देखकर मानों देवियाँ शर्मिन्दा होती हों वैसी चिन्ता द्वारा किसी भी प्रकार से निद्रा को प्राप्त नहीं करती 23. प्रा. गायंता सज्झायं झायंता धम्मझाणमकलंकं । जाणंता मुणियव्वं, मुणिणो आवस्सए लग्गा ||37|| सं. स्वाध्यायं गायन्तः, अंकलङ्क धर्मध्यानं ध्यायन्तः । जानन्तो ज्ञातव्यं, मुनय आवश्यके लग्नाः ।।37।। हि. स्वाध्याय करनेवाले, निष्कलंक धर्मध्यान करनेवाले, जानने लायक पदार्थों को जाननेवाले मुनि आवश्यक क्रिया में लग गये = (करने लगे) हिन्दी वाक्यों का प्राकृत एवं संस्कृत अनुवाद 1. हि. जम्बूकुमार ने कुमारावस्था में अपनी सब ऋद्धि का त्याग करके चारित्र ग्रहण किया । प्रा. जंबूकुमारेण कुमरत्तंमि अप्परं सलं इड्डि चइत्ता चारित्तं गिण्हीअं । सं. जम्बूकुमारेण कुमारत्वे आत्मीयां सर्वामृद्धिं त्यक्त्वा चारित्रं गृहीतम । हि. मैं शास्त्र पढ़ने के लिए गुरु भगवन्त के पास जाता हूँ। प्रा. हं सत्थाई अहिज्जिउं गुरुं गच्छामि । सं. अहं शास्त्राण्यध्येतुं गुरु गच्छामि । हि. गुरुं प्रमाद करते हुए साधु को पढ़ने के लिए कहते है । प्रा. गुरुं प्रमज्जंतं मुणिं पढउं कहेइ । सं. गुरुः प्रमाद्यन्तं मुनिं पठितुं कथयति । हि. रात्रि के प्रथम प्रहर में सोकर और अन्तिम प्रहर में जागकर किया जानेवाला अभ्यास स्थिर बनता है। प्रा. रत्तीए पढमे जामे सुविऊण चरिमे य जामे जग्गिऊण कीरन्तो अब्भासो थिरो होइ। सं. रात्रेः प्रथमे यामे सुप्त्वा, चरमे च यामे जागरित्वा क्रियमाणोऽभ्यासः स्थिरो भवति । - ॐ
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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